पृष्ठ:विद्यापति ठाकुर की पद्यावली.djvu/४८०

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

________________

४ ४६ विद्यापति ।। तोह होएव परसन पाव अमोल धन । जनम चहल एहि आले । जमहु सङ्कट पुनु उपोखे हलह जनु सेओलहे बड़े परासे ॥४॥ स्रवन नयन गेले तनु अवसन भैले यदि तोहे होएव परसने । कि करव ततिखने हय गर्भ मणि धने झखइते बेशकुल मने ॥६॥ ईद चॉद गन हरि कमलासन सबै परिहरि हमे देवा ।। भगत बछल प्रभु वान महेसर इ जानि कइल तुअ सेवा ॥८॥ विद्यापति भन पुरह हमर मन छाड़ओ जमक तरासे । हरहे हमर दुख त थिहु तोहर सुख सब होअो तुअ परसादे ॥१०॥ ४४ ए हर गोसाळे नाथ तोहर सरन कएलञो । किछु न धरव सबै बिसरख पछाजे जत कएलओ ॥२॥