पृष्ठ:विद्यापति ठाकुर की पद्यावली.djvu/४८३

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विद्यापति । A M A

55 नानाविषयक पदावली । तात वचने वैकले वन खेपल जनम दुखहि दुखे गेला । सीअक सोगे स्वामि सन्तापल विरहे विखिन तन भेला ॥२॥ मन राघव जागे राम चरन चित लागे ॥४॥ कनक मिगि मारि विराध वधल वालि वानर सैन वटुराई । सेतु कन्ध दिराम लङ्क लिअ रावन मारि नड़ाइ ॥६॥ दशरथनन्दन दशशिरखण्डन तिहुअन के नहि जाने । सीता दैविपति राम चरण गति कवि विद्यापति भाने ।।८।। कुसुम रस अति मुदित मधुकर कोकिल पञ्चम गाव । ऋतु वसन्त विदेस वालभु मानस हो दिस धाव साजना ॥२॥ तेजल तेल तमोल तापन सपन निशि सुख रङ्ग । हेमन्त विरह अनन्त पाविय सुमरि सुमरि पिया सङ्ग साजना १४॥ मौर दादुर सौर अहोनिसि वरिस वृंद सबुन्द ।। विषम वारिस विना रघुवर विरहिनि जीवन अन्त साजनिया ॥६॥ सुमुखि धैरज सकल सिधि मिल सुनह कत सुवानि ।। सिसिर सुभ दिन राम रघुवर प्राग्रोव तुय गुन जानि साजनिआ ॥८॥