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पृष्ठ:विद्यापति ठाकुर की पद्यावली.djvu/४९०

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३५३९, विद्यापति ।

उत्तरे। । । । । । । पुरुव देखल पये सपने न देखिअ ऐसनि न करवि वुधा । । रस सिङ्गार पार के पाओत अमोल मनोभव सिधा । । । भनइ विद्यापति अरे वरजौवति जानल सकल मरमे । । शिवसिंह राय तोरा मन जागल काह्न काह्न करसि भरमे ॥ ६॥ शिवसिंह का सिंहासनारोहण ।। अनैल रन्ध्र कैर लक्खन नरवए सक समुँह कैर आर्गेनि सस । चैत कारि छठि जेठा मिलिओ वार वेहप्पए जाउलसी ॥ २ ॥ देवसिंहे जे पुहवी छडिअ अद्धासन सुरराए सरु ।। दुहु सुरुतान नीन्दे अबे सोअउ तपन हीन जग तिमिरे भरु ॥ ४ ॥ देखहु ओ पृथिमी के राजा पौरुस माझ पुन्न वलियो । सतवले गङ्गा मिलित कलेवर देवसिंह सुरपुर चलिओ ॥ ६ ॥ एक दिस ससकल जीवन बल चलिओ ओका दिस से जम राए चरु । दूअओ दुलटि मनोरथ पूरे ओ गरुअ दाप सिवर्सिहे करु ॥ ८॥ सुरतरु कुसुम घालि दिस पूरे ओ दुन्दुहि सुन्दर साद धरु । वीरछत्त देखनको कारन सुरगन,सते गगन भरु ॥१०॥ , आरम्भिअ अन्तेठि महामख राजसूय असमेध,जहाँ ।, ।। " इत, घर आचार वखानिअ जाचकको घर दान कहाँ ॥१२॥