पृष्ठ:विद्यापति ठाकुर की पद्यावली.djvu/५०२

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४६ ६ विद्यापति । प्रहेलिका । कुसुमित कानन कुञ्ज वसि । नयनक काजर घोरि मसि ॥ २ ॥ नखसों लिखल नलिनी दल पात । लीखि पठाओल अखिर सात ॥ ४ ॥ पहिलहि लिखलनि पहिल वसन्त । दोसरेलिखलनि तेसरक अन्त ॥ ६ ॥ लिखि नहि सकलि अनुज वसन्त । पहिलहि पद अछि जीवक अन्त ॥ ८ ॥ भनहि विद्यापति आखर लेख । बुंध जन हो से कहय विशेख ॥१०॥ प्रथम एकादश दइ पहु गेल । सेहो रे वितल कते दिन भेल ॥ २ ॥ ऋतु अवतार वयस मोर भेल । तइओ न पहु मोर दरशन देल ॥ ४ ॥ चान किरण मोहि सहलो नइ जाय । चानन शीतल मोहि न शोहाय ।। ६ ।। भनइ विद्यापति शुनु व्रजनारि । धैरज धैरह मिलत मुरारि ॥ ८॥


सिन्धु सुतापति दुति गेल माइहे निरधिनी वापरे । केवा विगलित पुलकित माइ हे से देखि हिअरा भूरे ॥२॥ मोर पिआर गगन भरि आएल न अएले मोर पिआरा ॥३॥ मालि मउलि हस वालम्भु विदेस वस अहि भोअने महि पूरे । सरअ सरोज वन्धु कर वञ्चित कुमुद मुद दिनकरे ॥५॥