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पृष्ठ:विद्यापति ठाकुर की पद्यावली.djvu/५६

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विद्यापति । == = == sssssss दूती। ८६. आजु हम पेखल कालिन्दि कूले । तुय विनु माधव विलुठय धूले ॥ २ ॥ कत शत रमणि मनहिं नहि आने । किय विष दह समय जल दाने ॥ ४ ॥ मदन भुजङ्गमे देशल कान । विनहि अमिय रस कि करच आन ॥ ६ ॥ कुलवति धरम काँच समतूल । मदन दलाल भेल अनुकूल ॥ ८॥ आनल बेचि नीलमणि हार । से तुहु पहिरवि कार अभिसार ॥१०॥ नील निचोले झॉपवि निज देह । जन घन भितरे दामिनि रेह ॥१५॥ चौदिगे चतुर सखि चलु सङ्गै । आजु निकुञ करह रस रङ्गे ॥१४॥ बल्लभ उज्जल निकप समान । निज तनु परिख हेम दशबान ॥१६॥ (१६) दशयन=दशगुण मूल्य । दूती। ६० आज पेखल नन्दकिशोर ।। केल बिलास सबहु अव तेजल अह निशि रहत बिभोर ॥ २ ॥ यवधरि चकित बिलोकि विपिन तटे पलटि आओलि मुख मोरि । तवर्धरि मदनमोहन तरु कानने लुटइ धीरज पुन छोरि ॥ ४ ॥ पुन फिरि सोइ नयने यदि हेरवि पाओब चैतने नाह। भुजाङ्गनि दश पुनहि यदि दंशय तबहि समय बिष याह ॥ ६ ॥ अब शुभ खन धनि मनिमय भूपण भूषित तनु अनुपाम् । अभिसरु वल्लभ हृदय विराजह जनि मनि काञ्चन -८ ॥ ,