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पृष्ठ:विद्यापति ठाकुर की पद्यावली.djvu/९३

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विद्यापति । L राधा । गरबे न कर हठ लबुध मुरारि । तुय अनुरागे न जीव बर नारि ॥२॥ तुहु नागर गुरु हम अगेयान । केलि कला सब तुहु भल जान ॥४॥ फुयल कवर मोर टूटल हार । हम अबुध नारि तुहु त गोयार ॥६॥ विद्यापति कह कर अवधान । रोगि करय जइसे शौखध पान ॥८॥ राधा । १७० हमे अवला तोहे वलमत नाह। जीवक बदले पेम निरवाह ॥२॥ पछि मनसिज मत दरसह भाव । कउतुके करियर करनि खेलाव ॥४॥ परिहर कुन्त देहे जिव दान । आज न होएत निसि अवसान ॥६॥ इन दया नहि दारुन तोहि.। नहि तिरिबध डर हृदअ न मोहि ॥८॥ रमन सुखे जो रमनी जीव । मधुकर कुसुम राखि मधु पीव ॥१०॥ । भनई विद्यापति पहु रसमन्त । रतिरस रभस होएत नहि अन्त ॥१२॥