पृष्ठ:विनय पत्रिका.djvu/११९

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विनय-पत्रिका १२२ हार-केयूर, करकनकककनरतन-जटितमणि-मेखला कटिप्रदेशं। युगल पद नूपुरामुखर कलहंसवत, सुभग सर्वांग सौंदर्य वेशं ॥ सकल सौभाग्य-संयुक्त त्रैलोक्य-श्री दक्षि दिशि रुचिर वारीश-कन्या !* वसत विबुधापगा निकट तट सदनवर, नयन निरखंति नर तेऽति धन्या ॥७॥ अखिल मंगल-भवन, निविड़ संशय-शमन दमन-वृजिनाटवी, कटहा । विश्वधृत, विश्वहित, अजित, गोतीत, शिव, विश्वपालन-हरण, विश्वकर्ता। शान-विज्ञान-वैराग्य-ऐश्वर्य निधि, सिद्धि अणिमादि दे भूरिदानं । ग्रसित-भव-व्याल अतित्रास तुलसीदास, त्राहि श्रीराम उरगारि-यानं ॥ भावार्थ-हे विन्दुमाधव! आप सब सुखोकी वर्षा करनेवाले मेघ हैं, आनन्दवन काशीको पवित्र करनेवाले हैं, रागद्वेषादि द्वन्द्वजनित विपत्ति- को हरनेवाले हैं। आपके चरणकमलों में ब्रह्मा, शिव, सनक-सनन्दनादि, वर्तमान विन्दुमाधवजीकी बायीं ओर लक्ष्मीजी विराजती हैं। परन्तु यह मूर्ति मसजिद बननेके बादकी स्थापित की हुई है। तुलसीदासजीके समयमें लक्ष्मीजी दाहिनी ओर थीं। वह मूर्ति पड़ोसके एक ब्राह्मणके यहाँ है। उसके पूर्वजने जब देखा कि मुसलमान मन्दिर तोड़नेवाले हैं तो मूर्तियाँ अपने घरमें उठा ले गया। उस समय शैवकाशी विश्वनाथजीका और वैष्णवकाशीके विन्दुमाधवजीका मन्दिर तोड़ा गया और उसीकी जगह मसजिद बनायी गयी । एक धवरहरा मन्दिरका ही है । दूसरा उसी मेलमें बनाया गया । तुलसीदासजी जहाँगीरके समयमें वैकुण्ठवासी हुए और मन्दिर औरगजेबके राज्यकालमें तोड़े गये। -