पृष्ठ:विनय पत्रिका.djvu/१२

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श्रीसीतारामाभ्यां नमः विनय-पत्रिका श्रीगणेश-स्तुति राग बिलावल [१] गाइये गनपति जगवंदन । संकर-सुवन भवानी-नंदन ॥ १॥ सिद्धि-सदन,गज-बदन,विनायक कृपा-सिंधु सुंदर सब-लायक ॥ मोदक-प्रिय मुद-मंगलदाता|विद्यावारिधि, वुद्धि-विधाता॥३॥ माँगततुलसिदास कर जोरे । बसहिं रामसियमानस मोरे ॥४॥ भावार्थ-सम्पूर्ण जगत्के वन्दनीय, गणोंके खामी श्रीगणेश- जीका गुणगान कीजिये, जो शिव-पार्वतीके पुत्र और उनको प्रसन्न करनेवाले हैं ॥ १ ॥ जो सिद्धियोंके स्थान हैं, जिनका हाथीका-सा मुख है, जो समस्त विघ्नोंके नायक हैं यानी विघ्नोंको हटानेवाले हैं, कृपाके समुद्र हैं, सुन्दर है, सब प्रकारसे योग्य हैं ॥ २॥ जिन्हें लड्डु बहुत प्रिय है, जो आनन्द और कल्याणको देनेवाले हैं, विद्याके अथाह सागर हैं, बुद्धिके विधाता हैं ॥ ३ ॥ ऐसे श्रीगणेशजीसे यह तुलसीदास हाथ जोड़कर केवल यही वर माँगता है कि मेरे मनमन्दिरमें श्रीसीतारामजी सदा निवास करें॥ ४ ॥