विनय-पत्रिका २५२ तुझे श्रीरामजी अच्छे लगे होते तो तू भी सबको अच्छा लगता; काल, कर्म और कुल आदि जितने (इस जीवके) प्रेरक हैं, वे सब फिर कोई भी तुझपर क्रोध न करते । समी तेरे अनुकूल हो जाते ॥४॥ यदि तू श्रीराम-नामसे प्रेम करता और उसीमें अपनी लगन लगाता, तो खार्थ और परमायें इन दोनोंके ही बटोही तुझपर विश्वास करते । अर्थात् तू संसार और परलोक दोनोंमें ही सुखी होता ॥५॥ जो तू सतोंकी सेवा करता एवं दूसरोंका दुःख सुन और समझकर दुखी होता, तो तेरे हृदयरूपी तालाबमें जो करोड़ों जन्मोंका मैल जमा है, वह नीचे बैठ जाता, तेरा अन्तःकरण निर्मल हो जाता ॥६॥श्रीरामका नाम न लेनेवालों के लिये संसारका मार्ग अगम्य है और अनन्त है, किन्तु उसीको तू बिना ही श्रमके पार कर जाता। जब श्रीरामके उलटे नामकी भी इतनी महिमा है कि उससे न्याध ( वाल्मीकि ) मुनि बन गये थे, तब सीधा नाम जपनेसे क्या नहीं हो जायगा ॥७॥ अरे मूर्ख | तेरा यह देवताओंको भी दुर्लभ (मानव ) शरीर यों ही न चला जाता ! तू कल्याणका मूल हो जाता और विधाता तेरे अनुकूल हो जाते ॥ ८॥ अरे मन ! यदित प्रेम और विश्वाससे राम-नाममें लौ लगा देता, तो हे तुलसी ! श्रीराम- कृपासे तू तीनों तापोंमें कभी न जलता ( अथवा यदि 'न तातो' की जगह निसातो पाठ माना जाय तो इसका अर्थ इस प्रकार होगा- हे तुलसी! श्रीरामकृपासे तू अपने तीनों तापोंको नष्ट कर देता) ॥९॥ [१५२] राम भलाई आपनी भल कियो न काको । जग जुग जानकिनाथको जग जागत साको॥१॥
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