पृष्ठ:विनय पत्रिका.djvu/२९

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विनय-पत्रिका ३० भूषन प्रसून बहु विविध रंग । नूपुर किकिनि कलरव विहंग ॥४॥ कर नवल वकुल-पल्लव रसाल । श्रीफल कुच, कंचुकिलता-जाल आनन सरोज, कच मधुपगुंजा लोचन विसाल नवनील कंज ॥६॥ पिक वचनचरित वरवर्हि कीर । सितसुमनहास, लीला समीर ।' कह तुलसिदास सुनुसिवसुजान।उर वसिप्रपंचरचे पंचवाना॥ करि कृपा हरिय भ्रम-पंदकाम जेहि हृदयवसहिं सुखरासिराम॥ मावार्थ-देखिये, शिवजी ! आज आप वन बन गये हैं। आप- के अर्धाङ्गमें स्थित श्रीपार्वतीजी मानो वसन्तऋतु बनकर आपको देखने आयी हैं ॥१॥ आपके शरीरको कान्ति मानो चम्पाके फूलोंकी माला है, सुन्दर नीले वस्त्र नवीन तमाल-पत्र हैं॥२॥सुन्दर जघाएँ केलेके वृक्ष और चरण लाल कमल हैं, पतली कमर सिंहकी और सुन्दर चाल हंसकी सूचना दे रही है ॥ ३ ॥ गहने अनेक रगोंके बहुत-से फूल हैं, नूपुर (पैंजनी) और किंकिणी (करधनी) पक्षियों- का सुमधुर शब्द है ।। ४ ॥ हाथ मौलसिरी और आमके पत्ते हैं, स्तन वेलके फल और चोली लताओंका जाल है ॥ ५॥ मुख कमल और बाल गूंजते हुए भौंरे हैं, विशाल नेत्र नवीन नील कमलकी पंखड़ियाँ हैं॥६॥ मधुर वचन कोयल तथा सुन्दर चरित्र मोर और तोते हैं, हँसी सफेद फल और लीला शीतल मन्द-सुगन्ध समीर है ॥ ७ ॥ तुलसीदास कहते हैं कि हे परमज्ञानी शिवजी। यह कामदेव मेरे हृदय- में बसकर बडाप्रपञ्च रचता है ।। ८ । इस कामको भ्रम फाँसोको काट डालिये, जिससेसुबवरून ओराम मेरे हस्यनें सर व