पृष्ठ:विनय पत्रिका.djvu/३

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श्रीहरिः वर्णानुक्रमणिका सब चित चेति चिनारयी ३४ / और काहि माँगियामा पद-सूचना पद-संख्या पद-सूचना पद-संख्या अकारन को हित और को है २३० | और कहें ठौर रघुवंस-मनि मेिरे२१० अजहुँ आपने रामके करतब १९३ | और काहि माँगिये ... ८० अति आरत, अति स्वारयी ३४ | और मोहि को है काहि कहिहौं १२३१ अब चित चेति चित्रकूटहि चलु २४ आयो... अवलौं नसानी, अब ननसैहौं १०५ कटु कहिये गाढ़े परे ... ३५ अस कछु समुझि परतरघुराया १२३ ॥ आपनो कबहुँ करि जानिहौ २२३ काहिं देखाइहो हरि चरन २१८ आपनो हित रावरे सोंजो पैसूझै २३८ कबहुँक अंब अवसर पाइ ४१ इहै कह्यो सुत ! वेद चहूँ काहुँक हौं यहि रहनि रहोगो १७२ इहै परम फलु, परम बड़ाई कबहुँ कृपा करि रघुवीर. २७० ईस-सीस वससि ... २० कबहुँ रघुवंसमनि! ... २११ एक सनेही साचिलो ... १९१ । कबहुँ समय सुधिद्यायवी. ४२ एके दानि-सिरोमनि साँचो १६३ कबहुँ सो कर-सरोजरघुनायक १३८ ऐसी आरती राम रघुबीरकी ४७ | क्वहूँ मन विश्राम न मान्यो ८८ ऐसी कौन प्रमुकी रीति" २१४ | करिय सॅभार, कोसलराय । २२० ऐसी तोहिन बूझिये हनुमान हठीले३२) कलि नाम कामतरु रामको १५६ ऐसी मूढता या मनकी... ९० कस न करहु करुना हरे " १०९ कम न दीनपर द्रवहु उमावर ऐसी हरि करत दासपर प्रीति ९८ ७ कहा न कियो, कहाँ न गयो २७६ ऐसे राम दीन हितकारी " १६६ कहाँ जाउँ कामों कही। ऐसेहि जनम-समूह सिराने २३५ और ठौर न मेरे ... १४९ ऐसेहू साहयकी सेवा ... ७१ कहाँ जाउँ कासों कही, ऐसो को उदार जग माही १६२ । कौन सुनै दीनकी .. १७९