पृष्ठ:विनय पत्रिका.djvu/३३९

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विनय-पत्रिका ३४४ सेवा करते है। राजा नृगका उद्धार करनेवाले भगवान्ने किसको अभय नहीं किया ? ( जो उनकी शरणमें गया, उसीको अभय कर दिया) ॥४॥ राग कल्याण [२१४ ] ऐसी कवन प्रभुकी रीति ? विरद हेतु पुनीत परिहरि पॉवरनि पर प्रीति ॥ १॥ गई मारन पूतना कुच कालकूट लगाइ। मातुकी गति दई ताहि कृपालु जादवराइ ॥ २ ॥ काममोहित गोपिकनिपर कृपा अतुलित कीन्ह । जगत-पिता विरंचि जिन्हके चरनकी रज लीन्ह ॥ ३ ॥ नेमतें सिसुपाल दिन प्रति देत गनि गनि गारि। कियो लीन सु आपमें हरि राज-सभा मॅझारि ॥ ४ ॥ व्याध चित दै चरन मारयो मूढ़मति मृग जानि । सो सदेह वलोक पठयो प्रगट करि निज बानि ॥ ५ ॥ कौन तिन्हकी कहै जिन्हके सुकृत अरु अघ दोउ । प्रगट पातकरूप तुलसी सरन राख्यो सोउ ॥ ६ ॥ भावार्थ-( भगवान्के सिवा ) और किस स्वामीकी ऐसी रीति है जो अपने विरदके लिये पवित्र जीवोंको छोड़कर पामरोंपर प्रेम करता हो ? ॥१॥ राक्षसी पूतना स्तनोम विप लगाकर उन्हें (भगवान कृष्णको) मारने गयी थी, किन्तु कृपाल यादवेन्द्र श्रीकृष्णने उसे माताकी-सी गति प्रदान की ( उसका उद्धार कर दिया) ॥२॥ आपने काममोहित गोपियोंपर ऐसी अतुल कृपा की कि जगत्पिता ब्रह्माने भी उनके चरणोंकी धूलि ( अपने मस्तकपर) चढ़ायी ॥३॥