विनय-पत्रिका ४४८ श्रीहनूमान्जीने एक महानाटक लिम्वकर श्रीरामचरित्रका विस्तृत वर्णन किया था । परन्तु उसके सुननेका कोई अधिकारी न पाकर उसे उन्होंने समुद्र में फेंक दिया । उसीक यत्र-तत्र विग्वरे कुछ अंगोको दामोदर मिथने सालन करके वर्तमान हनुमन्नाटकाकी रचना की है। ३९-संजीवनी समय- जब हनूमान्जी हिमालय पर्वतसे सञ्जीवनी बूटी लेकर आकाश- मार्गसे अत्यन्त तीव्र गतिसे लौटे आ रहे थे, उस समय भरतने उन्हें देखकर समझा कि कोई मायावी राक्षस जा रहा है। इसलिये उन्होंने एक बाण चलाया जो हनूमान्जीको लगा और वह हा राम ! हा राम' कहते हुए जमीनपर गिर पड़े। 'राम' शब्द सुनकर भरतको बडा दु.ख हुआ और उन्होंने दोडकर हनूमान्जीको उठा हृदयमे लगा लिया । इसी समय उनकी वाण चलानेकी महिमा जाननेमें आया । ४०-लवणासुर--- लवणासुर मथुराका अनाचारी प्रतापी असुर राजा था । इसके अत्याचारोंसे गौ, ब्राह्मण और तपखीजन त्राहि-त्राहि करने लगे। जब महाराजा श्रीरामचन्द्रजीके यहाँ उनकी फरियाद आयी तो शत्रुघ्नने महाराजसे लवणासुरको दण्ड देनेके लिये स्वयं जानेकी आज्ञा माँगी और आज्ञा प्राप्त होनेपर मथुरा जाकर उन्होंने अपने प्रबल पराक्रमसे लवणासुरका नाश कर प्रजाको सुखी किया । ४३-रिषि-मख-पाल- विश्वामित्र मुनिके आश्रमके समीप राक्षसोंने बहुत उत्पात मचा रक्खा था। वे तपस्यामें अनेकों प्रकारसे विघ्न डालते थे। उनके उपद्रवसे व्याकुल होकर विश्वामित्र मुनि अयोध्यामें महाराज दशरथक
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