४४७ परिशिष्ट गरुड़जीको अपने तेज चलनेपर बडा ही गर्व था । एक बार भगवान् श्रीकृष्णने श्रीहनूमान्जीको बहुत शीघ्र बुला लानेके लिये गरुड़को भेजा, गरुड़जी वहाँ गये और उन्होंने हनूमान्जीको साथ चलनेके लिये कहा। हनूमान्जी वोले, 'आप चलिये मैं अभी आता हूँ। गरुडने समझा देरसे आगे इसलिये कहा साथ ही चलिये ।' हनूमान्जी बोले, 'मै राम-कृपासे आपसे आगे पहुँच जाऊँगा।' इसपर गरुडको बडा ही आश्चर्य हुआ और वे खूब तेजीसे चले। भगवान्के सामने पहुंचनेपर वे क्या देखते हैं कि हनूमान्जी पहलेहीसे वहाँ विराजमान हैं। यह देखकर गरुडजीका गर्व जाता रहा। संपाति- ____ सम्पाति गीधराज जटायुके छोटे भाई थे । एक दिन दोनों भाई होडा-होड़ी सूर्यको छनेके लिये आकाशमे उडे । जटायु तो बुद्धिमान् थे, वे सूर्यके उत्तापके भयसे सूर्यमण्डलके समीप न जाकर लौट आये, परन्तु सम्पातिको अपने पराक्रमका घमंड था। वे आगे बढ़ते ही गये और सूर्यके समीप पहुंचते ही उत्तप्त किरणोंसे उनके पंख झुलस गये और वे माल्यवान् पर्वतपर धडामसे आ गिरे । फिर जब सुग्रीवकी आज्ञासे सीताजीकी खोजमें वानर और रीछ निकले और उस पर्वतपर पहुंचे तो सम्पातिने ही उन्हें सीताजीका पता बताया। हनूमान्जीकी कृपासे सम्पातिके पख जम गये और उनके नेत्रोंमें ज्योति आ गयी तथा उन्हें दिव्य शरीर प्राप्त हो गया। २९-महानाटकनिपुन- श्रीहनूमान्जी बडे भारी विद्वान् और गायनाचार्य थे, सूर्य- भगवान्से उन्होंने सब विधाएँ पढ़ी थीं । कहा जाता है कि
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