४५० विनय-पत्रिका जयन्त मोहित हो गया और कौएका रूप धारणकर सीताजीक पैरोंमें चोंच मारकर भागा। श्रीरामचन्द्रजीने पैरोंसे रक्त प्रवाहित हात देख सींकके वाणसे उसे मारा । जयन्त भागने लगा और वाण उसके पीछे लगा। वह सम्पूर्ण ब्रह्माण्डमें भागता फिरा, परन्तु कहीं भी उस शरण नहीं मिली। लाचार होकर वह श्रीरामचन्द्रजीकी शरणमें आ गिरा। भगवान्ने उसके प्राण तो नहीं लिये, पर उसकी एक आँख ले ली। ४९-कालिय- यमुनाजीमें एक बडा ही भयङ्कर सर्प रहता था। उसका नाम कालिय था। उसके विपके मारे वहाँका जल सदा खौलता रहता था । श्रीकृष्णभगवान्ने उसको नाथकर अपने वशमें कर लिया । पीछे वह यमुनाजीको छोड़कर समुद्र में चला गया। यह कथा श्रीमद्भागवतमें मिलती है। अंधक- अन्धक बडा उपद्रवी और बलवान् दैत्य था । यह हिरण्याक्ष- का पुत्र था । ब्रह्माजीकी आराधना करके इसने यह वरदान प्राप्त किया था कि 'जब मुझे ज्ञानकी प्राप्ति हो जाय, तब ही मेरा शरीरान्त हो नहीं तो मैं सदा जीता रहूँ। यह वरदान प्राप्त कर उसने त्रिलोकी- को जीत लिया। उसके भयसे देवता मन्दराचल पर्वतपर चले गये। यह वहाँ भी पहुँचकर उनको त्रसित करने लगा । इसपर देवता त्राहि-त्राहि करने लगे और आर्तस्वरसे उन्होंने महादेवजीको पुकारा। महादेवजीके साथ अन्धकासुरका बड़ा भयङ्कर युद्ध हुआ । अन्तम महादेवजीने उसे एक त्रिशूल मारा, जिससे वह असुर वहीं बैठकर महादेवजीके ध्यान में मग्न हो गया । महादेवजीने कहा कि 'वर
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