पृष्ठ:विनय पत्रिका.djvu/४४८

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
४५३
परिशिष्ट
 

माँगने गये थे और उस परमदानी ऋषिने देवोंके उपकारमें अपने शरीरका त्याग किया था। उन्हीं हड्डियोंमेंसे एकसे वज्र बना था जो इन्द्रका प्रमुख अस्त्र है। उसी वज्रसे इन्द्रने वृत्रको मारा था।

वान―

बाणासुर राजा बलिका पुत्र था। इसके सहस्र बाहु थे। यह शिवजीका परम भक्त था। इसकी पुत्री ऊषा परम सुन्दरी थी। वह खप्नमें श्रीकृष्णभगवान्के पौत्र अनिरुद्धका रूप देखकर मोहित हो गयी और अपनी सखी चित्रलेखाके चित्रोंद्वारा उसका पता जानकर उसे चुपकेसे अपने अन्तःपुरमें मँगा लिया। जब यह बात बाणासुर- को मालूम हुई तो उसने अनिरुद्धको कैद कर लिया। इसपर वाणासुर और भगवान् श्रीकृष्णमें बड़ा घोर युद्ध हुआ। शिवजी बाणासुरकी ओरसे इस युद्धमें लड़ रहे थे। जब बाणासुरके सब बाहु कट गये, केवल चार ही बच रहे तब वह भगवद्भक्त हो गया। शिवजीके स्तवनसे भगवान्ने उसे अभय कर दिया। तत्पश्चात् अनिरुद्ध और ऊषाका विवाह हुआ। यह कथा भी श्रीमद्भागवतमें आती है।

मय―

मय नामक दानव बड़ा ही कलाकुशल था। इसकी कलाकी प्रशंसा महाभारत, रामायण आदि धर्म-ग्रन्थोंमें यत्र-तत्र मिलती है। खर्णपुरी लंकाका निर्माण इसीने किया था। महाभारतमें इन्द्रप्रस्थके अपूर्व नगरका निर्माता भी यही मय दानव था। यह भगवद्भक्त था।

द्विजबँधु―

द्विजबन्धुका अभिप्राय अजामिलसे है। यह बड़ा ही दुराचारी और महापातकी ब्राह्मण था। इसके छोटे लड़केका नाम नारायण