पृष्ठ:विनय पत्रिका.djvu/७४

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विनय-पत्रिका सारूप्य और सायुज्य) मोक्षके सुन्दर चार फल उत्पन्न हुए। आपने वेदोक्त यज्ञादि कर्म, धर्म, पृथ्वी, गौ, ब्राह्मण, भक्त और साधुओंको आनन्द दिया ॥२॥ आपकी जय हो-आपने ( राक्षसोंको मारकर ) विश्वामित्रजीके यज्ञकी रक्षा की, सज्जनोंको सतानेवाले दुष्टोंका दलन किया, शापके कारण पाषाणरूप हुई गौतम-पत्नी अहल्याके पापोको हर लिया, शिवजीके धनुषको तोडकर राजाओंके दलका दर्प चूर्ण किया और बल-वीर्य-विजयके मदसे ऊँचा रहनेवाला परशुरामजीका मस्तक झुका दिया ॥ ३ ॥ आपकी जय हो-आप धर्मके भारको धारण करनेमें बड़े धीर और रघुवंशमे असाधारण वीर हैं । आपने गुरु, माता, पिता और भाईके वचन मानकर चित्रकूट, विन्ध्याचल और दण्डक वनको, उन पवित्र वनोंमें विहार करके कृतकृत्य कर दिया ॥ ४॥ श्रीरामचन्द्रकी जय हो-जिन्होंने इन्द्रके पुत्र काकरूप बने हुए कपटी जयन्तको उसकी करनीका उचित फल दिया, जिन्होंने गड्ढा खोदकर विराध दैत्यको उसमें गाड़ दिया, दिव्य देव- कन्याका रूप धरकर आयी हुई राक्षसी शूर्पणखाको पहचानकर उसके नाक-कान कटवाकर मानो संसारभरके सुखमें बाधा पहुंचाने- वाले रावणका तिरस्कार किया ॥५॥ श्रीरामचन्द्रजीकी जय हो-आप खर, त्रिशिरा, दूषण, उनकी चौदह हजार सेना और मारीचको मारनेवाले हैं, मांसभोजी गृध्र जटायु और नीच जातिकी स्त्री शबरीके प्रेमके वश हो उनका उद्धार करनेवाले, करुणाके समुद्र, निष्कलङ्क चरित्रत्राले और त्रिविध नापोंका हरण करनेवाले हैं ॥६॥ श्रीरामचन्द्र- जाको जय हो-जिन्होंने दुष्ट, मदान्ध कबन्धका वध किया, महा- बलवान् बालिको मारकर सुग्रीवको राजा बनाया, बड़े-बड़े वीर बंदर