पृष्ठ:विनय पत्रिका.djvu/८८

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विनय-पत्रिका कामदेवोंकी-सी शोभावाले, कमलके सदृश सुन्दर नेत्रोंवाले और समस्त विषमें रमनेवाले कृपालु हैं। भगवान् शिव-शंख और कपूरके समान चिकने, श्वेत और सुगन्धित शरीरवाले, मलरहित, मस्तकपर जटाजूट और गङ्गाजीको धारण करनेवाले तथा सफेट पुष्योंकी माला पहने हुए हैं ॥ ४ ॥ भगवान् विष्णु-कमलके केसरके समान पीताम्बर धारण किये तया हामि शंख, चक्र, पन, शाई धनुष और अत्यन्त विशाल कौमोदकी गदा लिये हुए हैं। भगवान् शिव--कामदेवरूपी मतवाले हाथीको मारनेके लिये सिंहरूप, तीन नेत्रवाले और आवागमनरूपी जगत्के जालका नाश करनेवाले हैं। ऐसे शिवजीको मैं प्रणाम करता हूँ ॥५॥ भगवान् विष्णु-सबका आकर्षण करनेवाले, करुणाके धाम, कालिय-नागके दमन करनेवाले और कंस आदि अनेक दुष्टोंको निर्वश करनेवाले हैं। __ भगवान् शिव-त्रिपुरासुरका मद चूर्ण करनेवाले, मतवालेहाथी- का चर्म धारण करनेवाले और अन्धकासुररूपी सर्पको प्रसनेके लिये गरुड़ हैं ॥६॥ भगवान् विष्णु-पूर्णब्रह्म, चराचरमें व्यापक, कलारहित, सबसे श्रेष्ठ, परम हितैषी, ज्ञानवरूप, अन्तःकरणरूपी भीतरी और श्रवणादि बाहरी इन्द्रियोंसे अतीत और तीनों गुणोंकी वृत्तियोंका हरण करनेवाले हैं।