पृष्ठ:विनय पत्रिका.djvu/९४

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

विनय-पत्रिका वाम भाग सुन्दर तागड़ीकार गटमें मनोहरहा है, बाहुओंपर कोमल सुवर्णकाजी विराजमान हो रहा है। सिंहासन होठलाल-लाल विम्बाफलके समान हैं, मधुर मुसकान है, शंखके समान कण्ठ और परम सुन्दर ठोढ़ी है। जिनके वचन बड़े ही गम्भीर होते हैं, जो सत्यसंकल्प और देवताओंके दु खोका नाश करनेवाले हैं ॥ ४॥ रंग-बिरंगे फूलों और नये तुलसी-पत्रोंकी कोमल वनमाला जिनके हृदयपर सुशोभित हो रही है, उस मालापर सुगन्धके का मतवाले भौरोंका समूह मधुर गुंजार करता हुआ उड रहा है।॥ ५॥ जिनके हृदयपर सुन्दर श्रीवत्सका चिह्न है, बाहुओंपर वाजूवन्द, हाथोंमें कंकण और गलेमें मनोहर हार शोभित हो रहा है, कटिदेशमें सुन्दर तागड़ीका मधुर शब्द हो रहा है। सिंहासनपर वाम भागमें श्रीजानकीजी विराजमान हैं, जो तमाल वृक्षके समीप कोमल सुवर्णलता-सी शोभित हो रही हैं ॥ ६॥ जिनके भुजदण्ड घुटनोंतक लम्बे हैं; बायें हाथमे धनुष और दाहिने हाथमे एक वाण है। जिनको सम्पूर्ण मुनिमण्डल, देवता, सिद्ध, श्रेष्ठ गन्धर्व, मनुष्य, नाग और अनेक राजा-महाराजागण प्रणाम करते हैं ॥७॥जो पाप- रहित, अखण्ड, सर्वज्ञ, सबके खामी और निश्चयपूर्वक हमलोगोंको कल्याण प्रदान करनेवाले है जो शरणागत भक्तोंके कष्ट मिटानेकी कलामें सर्वथा निपुण हैं, ऐसे लक्ष्मणजीसहित श्रीरामचन्द्रजीको मैं प्रणाम करता हूँ॥८॥ जिनके दोनों चरणकमल आनन्दके धाम और कमला ( लक्ष्मीजी ) के निवासस्थान हैं अर्थात् लक्ष्मीजी सदा उन चरणोंकी सेवामें लगी रहती है। वन आदि ४८ चिह्नोंसे जो अत्यन्त शोभा पा रहे हैं और जिन्होंने भक्तवर श्रीहनुमानजीके निर्मल हृदयको अपना श्रेष्ठ मन्दिर बना रक्खा है यानी श्रीहनुमान्जीके हृदयमें यह चरण-कमल सदा बसते हैं, ऐसे शोक