पृष्ठ:विनय पत्रिका.djvu/९६

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

विनय-पत्रिका कालकलिजनित-मल-मलिनमन सर्व नर मोह-निशि-निविड़यवनां- धकार। विष्णुयश-पुत्र कलकी दिवाकर उदित दासतुलसी हरण विपति- भारं ॥ ९॥ भावार्थ-हे कोसलपति ! हे जगदीवर !! आप जगत्के एकमात्र हितकारी हैं, आपने अपने अपार गुणोंकी वडी लीला फैलायी है। आपके परम पवित्र चरित्रको चारों वेद, शेषजी, शुकदेव, शिव, सनकादि और मननशील नुनि गाते हैं ॥१॥ आपने मत्स्यरूप धारण कर अपने भक्तोंको पार करनेके लिये (महाप्रलयके समय ) पृथ्वीकी नौका बनायी; आपकी अपार महिमा है । आप समस्त यज्ञोंके अंशासे पूर्ण हैं, आपने बड़े भयङ्कर गरीरवाले हिरण्याक्ष दानवका मर्दन करके शूकररूपसे पृथ्वीका उद्धार किया॥ २॥ हे मुरारे । आपने अति भयानक कछुएका रूप धारण करके समुद्र-मन्यनके समय . रसातलमें जाते हुए मन्दराचल पहाड़को अपनी कठिन पीठपर रख लिया, उस समय उसपर पर्वतके घूमनेसे आपको खुजलाहटका-सा सुख प्रतीत हुआ था । समुद्र मथनेपर आपने उसमेसे अमृत, कामधेनु, लक्ष्मी और चन्द्रमाको उत्पन्न किया, इससे आपने देवताओं- को बहुत आनन्द दिया ॥३॥ आपने अतुलित बलशाली नृसिंहरूप धारण करके मनुष्य, मुनि, सिद्ध, देवता और नागोंको दु.ख देनेवाले, ब्राह्मण और धर्मकी मर्यादाका नाश करनेवाले दुष्ट दाना हिरण्य- कशिपुरूप शत्रुको विदीर्ण कर भक्तवर प्रह्लादको आह्लादित कर दिया॥ ४॥ आपने वामन ब्रह्मचारीका रूप धारण कर राजा बलिको छलनेके लिये पहले तीन पैर पृथ्वी मॉगी, पर नापते समय तीन वि०प०७-