६४।७०-८८ ] ४-पाचित्तिय [ ५७ ७०-जो भिनुणी शिष्याको भिक्षुणी बनाकर कमसे कम पाँच छ योजन भी न ले लिवा जाये, उसे । (इति) गासिनी-वग्ग ॥७॥ ७१--जो भिक्षुणी बीस वर्षसे कमकी कुमारीको भिक्षुणो बनावे, उसे । ७२-जो भिनुणी पूरे बीस वर्षकी कुमारीको दो वर्ष तक छों धर्मोकी शिक्षा बिना दिये भिक्षुणी बनावे, उसे । ७३--जो भिक्षुणी पूरे वीस वर्षको कुमारीको दो वर्ष तक छों धर्मोकी शिक्षा देकर संघकी सम्मति विना भिक्षुणो बनावे, उसे । ७४-जो भिक्षुणी बारह वर्षसे कम उम्रवालीको भिक्षुणी बनावे, उसे । ७५-जो भिक्षुणी पूरे वारह वर्षवालीको संघको सम्मति विना भिक्षुणी बनावे, उसे । ७६-जो भिक्षुणी-"आर्ये ! मत (इसे ) मिनुणी बना"-कहे जानेपर "अच्छा" कह, पीछे वातसे हट जाय, उसे० । ७७-जो भिक्षुणी शिक्षमाणाको-"यदि तू आर्य ! मुझे चीवर देगी तो मैं तुझे भिक्षुणी बनाऊँगो"-कह कर पीछे बिना किसी कारणके न भिक्षुणी बनावे, न उसके लिये प्रयत्न करे, उसे। ७८-जो भिक्षुणी शिक्षमाणाको-"यदि तू आर्ये ! दो वर्ष तक मेरे साथ साथ रहेगी तो मैं तुझे साधुनी वनाऊँगी”–कह कर पोछे बिना किसी कारणके न भिक्षुणी वनावे, न उसके लिये प्रयत्न करे, उसे० । ७९-जो भिक्षुणी पुरुष या कुमारसे संसर्ग रखनेवाली चंडो दुःखदायिका, शिक्षमाणा- को भिक्षुणी वनावे, उसे०। ८०-जो भिक्षुणी माता, पिता या पतिकी आज्ञाके विना शिक्षमाणाको भिक्षुणी चनावे, उसे। ८१-जो भिक्षुणी परिवासके सम्मति-दानसे, शिक्षमाणाको भिक्षुणी वनावे, उसे० । ८२-जो भिक्षुणी प्रति वर्ष भिक्षुणी वनावे, उसे० । ८३–जो भिक्षुणी एक वर्षमें दोको भिक्षुणी बनावे, उसे (इति) कुमारिभूत-वग्ग ।।८॥ (३७) छाता-जूता, सवारी ८४-जो भिक्षुणी नोरोग होते हुए छाते, जूतेको धारण करे, उसे० । ८५-जो भिक्षुणी नीरोग होते हुए सवारोसे जाये, उसे । (३८) आभूषण आदिका शृङ्गार, ८६--जो कोई भिनणी संघाणी को धारण करे, उसे० । ८७-जो कोई भिक्षुणी स्त्रियोंके आभूपणको धारण करे, उसे० । ८८-जो भिडणी सुगंधित चूर्णस नहाये, उसेः । सवार वरहवी माला।
पृष्ठ:विनय पिटक.djvu/१००
दिखावट