पृष्ठ:विनय पिटक.djvu/९९

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भिक्खुनी-पातिमोक्ख [ ६४१५६-६९ (३२) भिक्षारहित स्थानमें वर्यावास ५६–जो भिक्षुणी भिक्षुओं-रहित श्राश्रम( वाले स्थान )में वर्षावास करे, उसे । ( ३३ ) प्रवारणा ५७-जो भिक्षुणी वर्षा-वास करके ( भिक्षु-भिक्षुण्णी ) दोनों संघोंके पास दृष्ट, श्रुत, परिशंकित इन तीनों प्रकारसे ( जाने गये अपराधोंको ) न स्वीकार करे, उसे । (३४) उपदेश-श्रवण और उपोसथ ५८–जो भिक्षुणी उपदेश और उपोसथके लिये न जाय, उसे 01 ५९–भिक्षुणीको प्रति पन्द्रहवें दिन भिक्षु-संघसे दो वातोंके पानेकी इच्छा रखनी चाहिये-(१) उपोसथमें पूछना, (२) उपदेश सुनने के लिये जाना । इनका अतिक्रमण करनेसे उसे । (३५) पुरुषसे फोड़ा चिरवाना ६०--जो भिक्षुणी गुह्यस्थान में उत्पन्न फोड़े या व्रणको विना ( भिक्षुणियोंके ) संघ या गणको पूछे अकेले पुरुषसे अकेलीही चिरवाये या धुलवाये या लेप कराये बँधवाये या छुड़वाये; उसे । (इति) आराम-वग्ग ॥६॥ (३६) भिक्षुणी बनाना ६१–जो भिक्षुणी गर्भिणीको भिक्षुणी बनावे, उसे । ६२-जो भिक्षुणी दूध पीते बच्चेवालीको भिक्षुणी वनावे, उसे । ६३–जो भिक्षुणी-जिसने दो वर्ष तक ( हिंसा, चोरी, व्यभिचार, झूठ, मद्य-पान और मध्याह्नोपरान्त भोजन-इन छोंके परित्याग रूपी ) छः धर्मोको नहीं सीखा-ऐसी शिक्षमाणा' को भिक्षुणी वनाये, उसे ० । ६४--जो भिक्षुणी दो वर्षों तक छहों धर्मोको सोखे हुए शिक्षमाणाको संबकी सम्मतिके विना भिक्षुणी बनावे, उसे । ६५-जो भिक्षुणी वारह वर्षसे कमको व्याही स्त्रीको भिक्षुणी बनावे, उसे । ६६-जो भिक्षुणी पूरे वारह वर्पकी व्याही स्त्रीको दो वर्ष तक छों धर्मोंकी शिक्षा बिना दिये भिक्षुणी वनावे, उसे ० । ६७-जो भिक्षुणी पूरे वारह वर्पकी व्याही स्त्रीको दो वर्ष तक छओं धर्मोंकी शिक्षा देकर संघकी सम्मति विना भिक्षुणी वनावे, उसे । ६८-जो भिक्षुणी शिष्या ( =सहजीविनो)को भिक्षुणी बनाकर दो वर्षों तक (शिक्षा, दीक्षा आदिमें ) न सहायता करे न करवाये, उसे । ६९-जो भिक्षुणी उपसंपन्न ( =भिक्षुणी ) हो ( अपनी ) उपाध्यायाके साथ दो वर्प तक न रहे, उसे । १ भिक्षुणी बननेकी उम्मीदवारीमें जो नियमोंको सीख रही है।