६४।१०६-१७ ] ४-पाचित्तिय [ ५९ (४६) जमीन खोदना १०६-जो कोई भिक्षुणी ज़मीन खोदे या खुदवाये उसे पाचित्तिय है। (इति) मुसावाद-वग्ग ॥१०॥ (४७) वृक्ष काटना १०७-भूत-ग्राम (=तृण वृक्ष आदि )के गिरानेमें पाचित्तिय है। (४८) संघके पूछनेपर चुप रहना १०८-(संघके पूछनेपर ) उत्तर न दे हैरान करनेमें पाचित्तिय है। (४) निंदना १०९-निंदा और वदनामी करनेमें पाचित्तिय है। (५०) संघकी चीज़में वेपर्वाही ११०---जो कोई भिक्षुणो संघके मंच, पीढ़ा, बिस्तरा और गद्देको खुली जगहमें विछा या विछवाकर वहाँसे जाते वक्त उन्हें न उठातो है, न उठवातो है, या बिना पूछेहो चली जातो है, उसे पाचित्तिय है। १११–जो कोई भिक्षु, संघके विहार (=आश्रम )में बिछौना विछाकर या विछवा- कर वहाँसे जाते वक्त उसे न उठाती है, न उठवाती है, या विना पूछेही चली जाती है, उसे पाचित्तिय है। ११२--जो कोई भिक्षुणी जानकर संघके विहार में पहिलेसे आई भिक्षुणीका विना ख्याल किये, यही सोचकर कि दूसरा नहीं, ( इस तरह ) आसन लगाये जिससे कि ( पहलेवाली भिक्षुणीको ) दिक्कत हो, और वह चली जाये, उसे पाचित्तिय है। ११३--जो कोई भिक्षुणी कुपित और असंतुष्ट हो (दूसरी) भिक्षुणीको संघके विहारसे निकाले या निकलवाये, उसे पाचित्तिय है। ११४--जो कोई भिक्षुणो संघके विहारमें ऊपर के कोठेपर पैर धवधवाते हुए मंच (=चारपाई ) या पीठपर एकदमसे वैठे या लेटे उसे पाचित्तिय है। ११५-भिक्षुणीको स्वामीवाला(=महल्लक)विहार वनवाते समय,दरवाजे तक किवाड़ों के बंद करने और जंगलोंके घुमानेके या लीपने के समय हरियालीसे अलग खड़ी होकर करना चाहिये । उससे आगे यदि हरियालोपर खड़ी हो करे तो पाचित्तिय है। (५१) बिना छना पानी पीना आदि ११६---जो कोई भिक्षु जानकर प्राणी-सहित पानीसे तृण या मिट्टीको सींचे या सिंच- वाये. उस पाचित्तिय है। (इति) भूत-गामवग्ग ।।१।। (५२) भोजन सम्बन्धी {१७-नीरोग भिक्षुणीका (एक) निवासस्थानमें एक ही भोजन ग्रहण करना चाहिये। इसने अधिक. ग्रहण करे तो पाचित्तिय है ।
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