भिक्खुनी-पातिमोक्ख [ ६४।११८-३० ११८-सिवाय विशेप अवस्थाके गणके साथ भोजन करने में पाचित्तिय है । विशेष अवस्थाएँ ये हैं रोगी होना, चीवर-दान, चीवर बनाना, यात्रा, नावपर चढ़ा होना, गहासमय (=बुद्ध आदिके दर्शनके लिये जाना ) और श्रमणों (=सभी मतके साधुओं )के भोजनका समय। ११९–घरपर जानेपर यदि ( गृहस्थ ) भिक्षुणीको आग्रहपूर्वक पूआ (=पाहुर ), मंथ (= पाथेय ) यथेच्छ प्रदान करे तो इच्छा होनेपर पात्रके मेखला तक भर ग्रहण करे। उससे अधिक ग्रहण करे तो पाचित्तिय है । पात्रको मेखला तक भरकर ग्रहण कर वहाँसे निकल भिक्षुणियोंमें बाँटना चाहिये यह उस जगह उचित है। १२०–जो कोई भिक्षुणी विकाल ( मध्याह्नकं वाद )में खाद्य, भोज्य खाये तो पाचित्तिय है। १२१–जो कोई भिक्षुणी रख-छोड़े खाद्य, भोज्यको खाये तो पाचित्तिय है। १२२–जो कोई भिक्षुणी जल और दन्त धोवन को छोड़कर बिना दिये मुखमें जाने लायक आहारको ग्रहण करे तो पाचित्तिय है। १२३–जो कोई भिक्षुणी ( दूसरी ) भिक्षुणीको ऐसा कहे-"आओ आर्ये ! गाँव या कस्बेमें भिक्षाटनके लिये चलें ।" फिर उसे दिलवाकर वा न दिलवाकर प्रेरित करे- "आर्ये ! जाओ, तुम्हारे साथ मुझे बात करना या वैठना अच्छा नहीं लगता, अकेले ही अच्छा लगता है ।"-दूसरे नहीं, सिर्फ इतने ही कारणसे पाचित्तिय है। १२४—जो कोई भिक्षुणी भोजवाले कुलमें प्रविष्ट हो वैठकी करती है तो उसे पाचित्तिय है। १२५–जो कोई भिक्षुणी पुरुषके साथ एकान्त पर्देवाले आसनमें बैठती है तो पाचित्तिय है। १२६–जो कोई भिक्षुणी पुरुषके साथ अकेले एकान्तमें बैठे उसे पाचित्तिय है। (इति) भोजन-वग्ग ॥१२॥ १२७–सिवाय विशेष अवस्थाके, निमंत्रित होनेपर जो भिक्षुणी भोजन रहनेपर भी विद्यमान भिक्षुणीको बिना पूछे भोजनके पहिले या पीछे गृहस्थोंके घरमें गमन करे, उसे पाचित्तिय है । विशेष अवस्था है-चोवर वनाना और चीवर-दान । १२८-नीरोग भिक्षुणीको पुनः प्रवारणा' और नित्य'-प्रवारणाके सिवाय चातुर्मासके भोजन आदि पदार्थ ( = प्रत्यय )के दानको सेवन करना चाहिये । उससे बढ़कर यदि सेवन करे तो पाचित्तिय है। (५३) सेनाका तमाशा १२९-जो कोई भिक्षुणी वैसे किसी कामके विना सेना प्रदर्शनको देखने जाये, उसे पाचित्तिय है। १३०-यदि उस भिक्षुणीको सेनामें जानेका कोई काम हो तो उसे दो तीन रात सेनामें वसना चाहिये । उससे अधिक वसे तो पाचित्तिय है। १ रोगी होनेपर पथ्यादिका दान पुन:-प्रवारणा और नित्य-प्रवारणा है ।
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