पृष्ठ:विनय पिटक.djvu/११३

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६७-अधिकरण-समथ ( ३०५-११) आर्याओ ! (समय समयपर ) उत्पन्न हुए अधिकरणों (= झगड़ों )के शमनके लिये यह सात अधिकरण-समथ कहे जाते हैं- (१) झगड़ा मिटानेके तरीके १–सन्मुख-विनय देना चाहिये। २-स्मृति-विनय देना चाहिये । ३–अमूढ़-विनय देना चाहिये। ४-प्रतिज्ञात-करण ( =स्वीकार ) कराना चाहिये । ५-यद्भूयसिक। ६–तत्पापीयसिक । ७-तिणवत्थारक। आर्याओ ! यह सात अधिकरण समथ कहे गये । आर्याओंसे पूछती हूँ-क्या आप लोग इनसे शुद्ध हैं ? दूसरी बार पूछती हूँ-क्या शुद्ध हैं ? तीसरी बार भी पूछती हूँ- क्या शुद्ध हैं ? आर्या लोग इनसे शुद्ध हैं, इसीलिये चुप हैं-ऐसा मैं इसे धारण करती हूँ। अधिकरण समथ समाप्त ॥७॥ आर्यायो ! निदान कह दिया गया। (१-८) आठ पाराजिक दोष कह दिये गये। (९-२५ ) सत्तरह संघादिसेस दोष कह दिये गये । (२६-५५ ) तीस निस्सग्गिय-पाचित्तिय दोष कह दिये गये । ( ५६-२२१ ) एक सौ छाछठ पाचित्तिय दोष कह दिये गये । ( २२२- २२९) आठ पाटिदेसनिय दोप कह दिये गये । ( २३०-३०४ ) पचहत्तर सेखिय बातें कह दी गईं। ( ३०५-३११ ) सात अधिकरण-समथ कह दिये गये । इतनाही उन भगवान् के सुत्तों (= सूक्तो कथनों )में आये, सुत्तों द्वारा अनुमोदित ( नियम हैं जिनकी कि ) प्रत्येक पन्द्रहवें दिन श्रावृत्ति की जाती है। (हम ) सवको एकमत हो परस्पर अनुमोदन करते, विवाद न करते उन्हें सीखना चाहिये । इति भिक्खुनी-पातिमोक्ख समाप्त पातिमोक्ख समाप्त ७० ] [ ६७१-७