पृष्ठ:विनय पिटक.djvu/११२

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५८- ५३-न पात्र चाट चाटकर खाऊँगी-। ५४-न ओठ चाट चाटकर खाऊँगी- ५५- न जूठ लगे हाथसे पानीका वर्तन पकडूंगी-०। ५६-न जूठ लगे पात्रके धोवनको घरमें छोडूंगी-०। (४) कैसेको उपदेश न करना ५७-हाथमें छाता धारण किये नीरोग ( व्यक्ति )को धर्म नहीं उपदेशृंगी~० । -हाथमें दंड लिये नीरोग (व्यक्ति )को धर्म नहीं उपदेशृंगी-। ५९–हाथमें शस्त्र लिये नीरोग ( व्यक्ति )को धर्म नहीं उपदेशृंगी-०। ६०-हाथमें आयुध लिये नीरोग ( व्यक्ति )को धर्म नहीं उपदेशृंगी-०। (इति) सुरुसुरु-वग्ग ॥६॥ ६१-खड़ाऊँपर चढ़े नीरोग (व्यक्ति)को धर्म नहीं उपदेशृंगी-। ६२-जूता पहने निरोग ( व्यक्ति )को धर्म नहीं उपदेशृंगी-०। ६३-सवारीमें बैठे नीरोग ( व्यक्ति )को धर्म नहीं उपदेशृंगी- ६४–शय्यामें लेटे नीरोग ( व्यक्ति )को धर्म नहीं उपदेशृंगी-०। ६५–पालथी मारकर बैठे नोरोग ( व्यक्ति )को धर्म नहीं उपदेशृंगी-०। ६६–सिर लपेटे नोरोग ( व्यक्ति )को धर्म नहीं उपदेशृंगी-० । ६७–ढंके शिरवाले नीरोग ( व्यक्ति )को धर्म नहीं उपदेशृंगी- ६८-न (स्वयं) भूमिपर बैठकर; आसन पर बैठे नीरोग (व्यक्ति)को धर्म उपदेशृंगो-० ६९-न नीचे आसनपर बैठकर ऊँचे आसनपर वैठे नीरोग ( व्यक्ति )को धर्म उपदेशृंगी-०। -खड़े हो, बैठे नोरोग ( व्यक्ति )को धर्म नहीं उपदेशृंगी- ७१-(अपने ) पीछे पीछे चलते आगे आगे जाते नीरोग ( व्यक्ति )को धर्म नहीं उपदेशेंगी- ७२-(अपने ) रास्तेसे हटकर चलते हुए, रास्ते से चलते नीरोग (व्यक्ति)को धर्म नहीं उपदेशृंगी- (५) पिसाब-पाखाना ७३-नोरोग रहते खड़े खड़े पिसाव-पाखाना नहीं कहंगी- ७४-नोरोग रहते हरियालीमें पिसाब-पाखाना नहीं करूँगी- ७५-नोरोग रहते पानोमें पिसाव-पाखाना नहीं करूँगी-०। (इति) पादुका-रग ॥७॥ आर्यायो ! यह ( पचहत्तर ) मेलिय वातें कह दो गई । आर्यायोंसे मैं पूछती है- क्या ( श्राप लोग ) इनसे शुद्ध हैं ? दूसरी बार भी पृछतो हूँ-क्या शुद्ध हुँ ? तीसरी बार फिर पृटती हैं-क्या शुद्ध है ? भार्या लोग इनसे शुद्ध हैं, इसीलिये चुप हैं-ऐसा मैं इग्ने धारण करती है। मेखिय समाप्त ॥६॥ ७०-