पृष्ठ:विनय पिटक.djvu/११८

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३-महावग्ग १ १-महास्कन्धक १-बुद्धत्त्व लाभ और वुद्धकी प्रथम यात्रा । २--शिष्य, उपाध्याय आदिके कर्तव्य । ३. उपसंपदा और प्रव्रज्या। ४--उपसंपदाकी विधि । ६१-बुद्धत्त्व लाभ और बुद्धकी प्रथम यात्रा १--उरुवेला (१) बोधि-कथा उस समय बुद्ध भगवान् उ रु वे ला में ने रं जरा नदीके तीर बोधि-वृक्षके नीचे, प्रथम बुद्धपद (=अभिसंबोधि)को प्राप्त हुए थे। भगवान् बोधिवृक्षके नीचे सप्ताह भर एक आसनसे मोक्षका आनंद लेते बैठे रहे । उन्होंने रातके प्रथम याममें प्रतीत्य-समुत्पादका अनुलोम (=आदिसे अन्तकी ओर) और प्रतिलोम (अन्तसे आदिकी ओर) मनन किया। -"अविद्याके कारण संस्कार होता है, संस्कारके कारण विज्ञान होता है, विज्ञानके कारण ना म - रूप, नाम-रूपके कारण छ आ य त न, छ आयतनोंके कारण स्पर्श, स्पर्शके कारण वे द ना, वेदनाके कारण तृष्णा, तृष्णाके कारण उपादान, उपादानके कारण भ व, भवके कारण जा ति, जाति (=जन्म)के कारण जरा (=बुढ़ापा), मरण, शोक, रोना पीटना, दु:ख, चित्त-विवार और चित्त-खेद उत्पन्न होते हैं । इस तरह इस (संसार)की-जो केवल दु:खोंका पुंज है-उत्पत्ति होती है। अविद्याके विल्कुल विरागसे, (अविद्याका) नाग होनेसे, संरवारका विनाश होता है । संस्कार-नाशसे विज्ञानका नाश होता है। विज्ञान-नारासे नाम-रूपका नाम होता है। नाम-रूपके नाशसे छ आयतनोंका नाश होता है । छ आयतनोंके नागसे स्पर्ग का नाग होता है । पर्ग-नाराले वेदना का नाश होता है। वेदना-नाशसे तृष्णा का नाग होता है । तप्णा-नागसे उपादान का नारा होता है । उपादान-नादासे भव का नाश होता है । भव-नाशसे जाति का नाग होता है । जाति- नागने जरा, मरण, शोक, रोना-पीटना, दुःख, चित्त-विकार और चित्त-खेद नाग होते हैं। इस प्रकार इस दुःख-पुत्रका नाग होता है । भगवान्ने इस अर्थको जानकर, उनी समय यह उ दा न कहा- 'भोट-भाषामें अनुवादित मूल सस्तिदादके दिनय-दस्तुम इसे ही प्रव्रज्या-वस्तु कहा गया है। बोधगया, जि० गया (बिहार)।