भांति ही उनकी भाषामें भी श का पूरा बायकाट था, और र को ल में बदल देनेका रवाज न था। इसके विरुद्ध स की जगह भी ग, तथा र के स्थानपर ल (जैसे राजाका लाजा) कहना मागधी भापाके विशेष लक्षण थे। महेन्द्रके सिंहल-आगमन (२४७ ई० पू०)से प्राय: ढाई सौ वर्ष तक त्रिपिटकके कंठस्थका भार सिंहलके गुजराती-प्रवासियोंको मिला था, जिनके उच्चारण मागधीसे विल्कुल ही उल्टे थे, यही कारण है, जो पलित्रोध (=परिबोध) आदि कुछ गब्दोंको छोळ जिनमें मागधी व्याकरणके अनुसार र के म्थानपर ल कायम रखा गया. मागधीकी सभी विशेषतायें लुप्त हो गई; और एक प्रकारसे वर्तमान पाली त्रिपिटक मागधी न होकर प्राचीन गुजराती भाषाका त्रिपिटक है। इसके कंठस्थ ले आनेका एक और प्रभाव पळा । हाँ, उस परिवर्तनका स्थान अधिकतर मिहल न होकर भारत था, जहाँपर कि बुद्ध-निर्वाणके २३६ वर्षों बाद तक वह रहा था। यह प्रभाव था याद करने के सुभीतेके लिये बहुतने एकसे अर्थवाले पाठोंको बिल्कुल उन्हीं गब्दोंमें दुहराना। मूल बुद्ध-वचन त्रिपिटकमें कुछ गाथाओंक प्रक्षिप्त होनेकी बान तो पृगने आचार्योने भी स्वीकार की है । मात्रिकाओंको छोळ साग अभिधर्म-पिटक ही पीछेका है, इसीलिये जिम प्रकार सुत्त-पिटक और विनय- पिटको स्थविग्वादियों और मर्वाम्निवादियोक पिटकोके पाठकी समानता है, वैसा उसमें नहीं। मैं अपने दूसरे लेख म हा या न वी धर्म की उत्य नि में यह भी लिग्ब चुका हूँ, कि अभिधर्म-पिटकका एक ग्रंथ- व. था - व न्यु का अधिकांय अगोकके समयमे न लिया जाकर बहुत पीछे ईमा पूर्व प्रथम शताब्दीके वैपुल्य वा दी आदि निकायोके विरुद्ध दिग्वा गया है। चुल्लवग्गके पं च गति का और सप्त श ति का बंधयोग भी ध मं (=मुन्न) और वि न य की ही बात आती है; यह भी उक्त बानकी पृष्टि करती है। पिर प्रश्न होता है, वया मुन-पिटक और बिनय-पिटक सभी बुद्ध-वचन है ? मुत्त-पिटकमें म जि म - नि का य के घोट म व मुत्तन्त ९८ ) की भाँति कितने तो स्पष्ट ही बुद्धनिर्वाणके बादव हैं । दवा - नि का य के. प टि म म्भि दा म ग्ग और नि दे स जैसे कुछ ग्रंथ तो अधिकांगमें सिपं. पहिले आये सूत्रोव भाप्य मात्र है. । सुत्न-पिटकमें आई वह मभी गाथायें, जिन्हें बुद्धके मुखसे निकला दान नहीं कहा गया, पीछेकी प्रक्षिप्त मालूम होती है। इनके अतिरिक्त भगवान् बुद्ध और उनके जियोकी दिव्याविनयाँ और स्वर्ग-नर्व. देव-अमुरकी अनिगयोविन पूर्ण कथाओंको भी प्रक्षिप्त माननमें गोई बाधा नहीं हो सकती। इन अपवादोंक माथ संक्षेपमें कहा जा सकता है, कि मुन-पिटकमें काग जिन म, में चुन अंगुन र चागें निकाय. तथा पांचवें बुद्दक-निकायके न्बु ह क पाठ, धम्म पद, काम. निबुल व.. और मृत-निपात यह छ ग्रंथ अधिक प्रामाणिक हैं। बल्कि ग्युद्दक निकायके इन ने विना पहिले चारो निकायोंक ही सूत्रों और गाथाओके आनेने, तथा कितने ही ऐतिहामिक को चनिका पिक गन्द आनेने तो दी प, म झि म, मं युन और अंगुनार इन चार निका भोजो की दर यान देना अधिक पक्तियुन मालूम होता है। इन चारोंमें भी म नि म - नि का य -- महागमहाररूपकी अकया ने जरायं भगवा आदि गाथाओंको पीछे बाली । एरा लिना महा गया। गद र १० ।
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