पृष्ठ:विनय पिटक.djvu/१५

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

- [] विनय-पिटक बुद्ध च र्या के प्राक्कथनमें मैंने लिखा था--"इस पुस्तकमें कुछ जगह एक ही घटनाको अट्ठ कथा वि न य, और सूत्र तीनोंके शब्दोंमें दिया है, उसके देग्वनेसे मालूम होगा, कि यू बों की अपेक्षा वि न य में अधिक अतिशयोक्ति और अलौकिकतामे काम लिया गया है; और अट् ट क था तो इस बात में बिनयमे बहुत आगे बढ़ी हुई है। और इमीलिये इसके ही अनुमार इनकी प्रामाणिकताका तारतम्य मान लेनेमें कोई हानि नहीं है।" इस प्रकार प्रामाणिकतामें विनय-पिटक सुन-पिटकमे दूसरे नंबरपर है। विनय- पिटकमें भी परि वा र के पीछे लिखे जानेकी बात मैं पहिले कह चुका हूँ। वि भंग और ग्बन्ध क में विभंग तो पातिमोक्ख-सुत्तोंपर व्याख्या मात्र है, इस व्याख्यामें भी प ड्व र्गी य भिक्षुओंके नामकी बहुत मी नजीरें तो सिर्फ उन अपराधोंका उदाहरण देने मात्रके लिये गढ़ी गई जान पळती हैं । यद्यपि ऐसी नजीरें खन्ध क में भी पाई जाती हैं, किन्तु वहाँ उनकी संख्या अपेक्षाकृत कम है । इस प्रकार विनय-पिटक का सबसे अधिक प्रामाणिक अंग भिक्षु-भिक्षुणी-प्रातिमोक्ष (० पातिमोक्ख) है, फिर बन्धकका नंबर आता है ; और वि भंग उसके बाद । ख न्ध क में भी पातिमोक्त्रमें आये, पारा जि क से खि य आदिके कितने ही नियम फिरमे दुहराये गये हैं। वन्धकके म हा व ग्ग, त्रु ल्ल व ग्ग पहिले एक ही ग्रन्थके रूप में थे, जैसे कि वह मूल सर्वास्तिवादियोंके महावस्तुमें मिलते हैं, सिर्फ पं च ग ति का और सप्त श ति का जैसे कुछ अध्याय पीछेके जोळे हैं। बुद्धके सम्बन्धमें खन्ध क में बुद्धके जीवनके कितने ही अंग ही नहीं आते, बल्कि कहीं कहीं तो भगवान्के एक स्थानसे दूसरे स्थान, वहाँसे तीसरे स्थान--इस प्रकार छ छ सात सात स्थानों तककी यात्राका वर्णन आता है। किन्तु इन यात्राओंको सीधे तौरपर जीवनके लिये इस्तेमाल नहीं किया जाता, क्योंकि कितनी ही जगह वुद्धके जीवनके वहुत पीछेकी घटनायें नज़ीर देने के लिये पहिले रख दी गई है २; और दूसरे प्रत्येक स्कंधकका विनय अलग होनेमे वहाँ यात्राका क्रम टूटा हुआ है। तो भी उनसे सहायता अवश्य मिल सकती है। विनय पिटककी उपयोगिता विनय-पिटक भिक्षुओंके आचार नियमोंके जाननेके लिये तो उपयोगी है ही, साथ ही वह पुगने अभिलेखों तथा फाहियान, इ-चिङ आदिके यात्रा विवरणोंको समझनेके लिये भी बहुत सहायक है। यही नहीं विनयमें तत्कालीन राजनैतिक, सामाजिक अवस्थाकी मूनक बहुत सी सामग्री मिलती है। यदि ची व र - स्कंध क, च र्म - स्कं ध क और भिक्षु णी वि भंग में आये वस्त्र-आभूपण आदिके नामोंको हम माँ ची की मूर्तियांस मिलाकर पढ़ें, तो हम उत्तरी भारतके स्त्री पुरुपोंकी तत्कालीन वेष-भूपाका बहुतसा जान पा सकते हैं। गमथ-स्कंधकमें आई श ला का ग्रहणकी प्रक्रिया तो वस्तुतः समकालीन लिच्छवि गणतंत्रके वोट लेने आदिकी प्रक्रियाकी नकल मात्र है । आजकल भी हमारी कोसिलोंमें किसी प्रस्तावको पंग करने, बहस करने, अन्तमें सभापति द्वारा सम्मति लेनेके ग्वास नियम हैं। विनय-पिटकके देखनेगे मालूम होगा कि भिक्षु-मंत्र (जो कि वस्तुतः उस समयके गणतंत्रोंकी नकल थी) में भी प्रस्ताव पेश करते वक्त एक ग्वाम आकारमें पेग किया जाता था, जिसे ज प्नि कहते थे । जप्तिके बाद सदस्योंको 'महावग्ग १९४८ (पृष्ट १३५) । देखो पृष्ठ २८९ में पाटलिग्रामकी बात ।