पृष्ठ:विनय पिटक.djvu/१६२

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१७३।४ ] प्रब्रज्याके लिये अयोग्य व्यक्ति [ ११७ भी भिक्षुओंको पीळा दे सकते हैं । अच्छा हो भन्ते ! आर्य (=भिक्षु) लोग राजसैनिकको प्रव्रज्या न दें।' तव भगवान्ने मगधराज सेनिय विम्बिसारको धार्मिक कथा कह ... संप्रहर्षित किया। तव मगधराज सेनिय बिम्बिसार भगवान्की धार्मिक कथासे. . . संप्रहर्षित हो, आसनसे उठ, भगवान्को अभिवादन कर, प्रदक्षिणाकर चला गया। तब भगवान्ने इसी संबंधमें, इसी प्रकरणमें धार्मिक कथा कह भिक्षुओंको संबोधित किया- "भिक्षुओ! राजसैनिकोंको नहीं प्रव्रज्या देनी चाहिये। जो दे उसे दुक्क ट का दोष हो।" 65 ३-~-उस समय अंगु लि मा ल डाकू (आकर) भिक्षु बना था। लोग (उसे) देखकर उद्विग्न होते, त्रास खाते और भागते, दूसरी ओर चले जाते, दूसरी ओर मुँह कर लेते और दरवाजा बन्द कर लेते थे। लोग हैरान होते, धिक्कारते और दुखी होते थे-कैसे शाक्य-पुत्रीय श्रमण ध्वज व न्ध (=ध्वजा उळाकर डाका डालनेवाले) डाकूको प्रव्रज्या देंगे !" भिक्षुओंने उन मनुष्योंके हैरान होने, धिक्कारने और दुखी होनेको सुना। तब उन भिक्षुओंने भगवान्से यह बात कही। (भगवान्ने यह कहा). "भिक्षुओ! ध्वजबन्ध डाकुको नहीं प्रव्रज्या देनी चाहिये । जो दे उसे दुक्क ट का दोप हो।" 66 ४-उस समय मगधराज सेनिय वि म्बि सा र ने आज्ञा कर दी थी-'जो शाक्यपुत्रीय श्रमणोंके पास जाकर प्रबजित होंगे उनको (दंड आदि) कुछ नहीं किया जा सकता। (भगवान्का) धर्म सुन्दर प्रकारसे कहा गया है, (लोग) दुःखके अच्छी प्रकार अन्त करनेके लिये (जाकर) ब्रह्मचर्य पालन करें। उस समय कोई पुरुष चोरी करके जेल (=कारा) में पळा था। वह जेलको तोळ भाग, कर भिक्षुओंके पास प्रब्रजित हो गया। लोग (उसे) देखकर ऐसा कहते थे---'यह वह जेल तोळनेवाला चोर है । अहो ! इसे ले चलें।' कोई कोई ऐसा कहते थे-~-'आर्यो ! मत ऐसा कहो। मगधराज सेनिय विम्बिसारने आना दे दी है-'जो शाक्यपुत्रीय श्रमणोंके पास जाकर प्रबजित होंगे उनको (दंड आदि) कुछ नहीं किया जा सकता। (भगवान्का) धर्म सुन्दर प्रकारसे कहा गया है, (लोग) दुःखके अच्छीप्रकार अन्त करनेके लिए (जाकर) ब्रह्मचर्य पालन करें।' (इससे) लोग हैरान होते, धिक्कारते और दुखी होते थे-'यह शाक्यपुत्रीय श्रमण अभय चाहनेवाले हैं। इनका कुछ नहीं किया जा सकता । कैसे यह गावयपुत्रीय श्रमण जेल तोळनेवाले चोरको प्रव्रज्या देंगे !' भिक्षुओंने भगवान्से यह बात कही। (भगवान्ने यह कहा) "भिक्षुओ! जेल तोळनेवाले चोरको नहीं प्रव्रज्या देनी चाहिये। जो दे उसे दुक्क ट का दोप हो।" 67 ५--उस समय कोई पुरुप चोरी करके भागकर भिक्षु बन गया था। वह राजाके अन्तःपुर (उचहरी) में लि खि त था -'(यह) जहाँ देखा जाय, वहीं मारा जाय।' लोग उसे देखकर ऐसा बहते थे-'यह वही लि खि त क चोर है। अहो इसे मार दें।' कोई कोई ऐसा कहते थे 'आर्यो ! मत ऐसा कहो । मगधराज मेनिय विम्बिसारने आज्ञा दे दी है-जो शाक्यपुत्रीय श्रमणोंके पास० ।' (भगवान् ने यह कहा)- "भिक्षुओ! लि खि त क चोरको नहीं प्रव्रज्या देनी चाहिये।"68 ६-उन समय कोळा मारनेका दंड पाया हुआ एक पुरुष भिक्षुओंके पास प्रव्रजित हुआ था। गोग गन होते ०। (भगवान्ने कहा)- "निशुओ ! कोळा मारनेका दंड पाये हुएको नहीं प्रदजित करना चाहिये ।"69 ---उन नमय एक पुरुष (राज.) दंडने लक्षणात (आगमें लाल किये लोहे आदिसे दागा)