पृष्ठ:विनय पिटक.djvu/१७५

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१३० ] ३-महावग्ग [ ११४११ 0 ८-o-नोक कटी (अँगुलियों) वालेको० । 141 ९-----पोर कटी (अंगुलियों) वालेको० । 142 १०-०- (सभी अंगुलियोंके कट जानेसे) फण जैसे हाथवालेको० । 143 -कुबड़ेको० | 144 १२--0--बौनेको० । 145 -घेघेवालेको० । 146 १४-0--ल क्ष णा ह त (जलते लोहेसे दागे हुए) को० । 147 -कोळे मारे गयेको० | 148 १६-लि खि त क को० 1 149 १७-सी प दि (=एक रोग) को ० । 150 १८-बुरे रोगवालेको० | IST १९-परिषद्-दूषकको० । 152 २०-कानेको० । 153 २१-लूलेको० । 154 २२--लँगड़ेको । 155 २३-पक्षाघातवालेको । 156 २४-ईर्यापथ (अच्छी रहन सहन) रहितको० । 157 २५-बुढ़ापासे दुर्बलको० 1 158 २६-अंधेको०1159 २७-गेको०। 160 २८-वहिरेको० । 161 २९-अंधे और गूगेको० । 162 ३०-अंधे और वहरेको० । 163 ३१-गूंगे और बहिरेको० 1 164 ३२-अंधे, गूंगे, वहरेको प्रव्रज्या देते थे, • भगवान्से यह बात कही। (भगवान्ने यह कहा)- "भिक्षुओ! अंधे, गूंगे, बहरेको नहीं प्रव्रज्या देनी चाहिये। जो प्रव्रज्या दे उसे दुक्कटका दोष हो।" 165 प्रवज्या-न-देने योग्य (प्रकरण) समाप्त ॥ नवम भाणवार समाप्त ।।९।। ४-उपसम्पडाको विधि (१) निश्रयके नियम १-उस समय प ड् वर्गी य भिक्षु लज्जाहीनों को नि ध य देते थे। भगवान्से यह बात कही। (भगवान्ने यह कहा)- "भिक्षुओ! लज्जाहीनोंको निश्रय नहीं देना चाहिये; जो दे उसे दुक्कटका दोष हो।" 166 "देखो पृष्ठ १०१ टि०।