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पृष्ठ:विनय पिटक.djvu/१८६

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२०१४ | प्रातिमोक्षकी आवृत्ति (२) उपोसथके दिन धर्मोपदेश उस समय (यह सोचकर कि) भगवान्ने चतुर्दगी, पूर्णमासी और पक्षकी अष्टमीको एकत्रित होनेकी आजा दी है । भिक्षु लोग चतुर्दगी, पूर्णमानी और पक्षकी अप्टमीको एकत्रित हो चुपचाप वैठते थे। जो मनुष्य धर्मोपदेश सुनने के लिये आते थे वह (यह देख) हैरान होते. . .थे---'कैसे शाक्यपुत्रीय श्रमण चतुर्दशी, पूर्णमानी और पक्षकी अष्टमीको एकत्रित हो त्रुपचाप बैठते हैं, जैसे कि गूंगे भेळ ! एकत्रित होकर तो धर्मोपदेग करना चाहिये था न ।' भिक्षुओंने उन मनुष्योंके हैरान होनेको सुना। तब उन भिक्षुओंने भगवान्ने इस बातको कहा, और भगवान्ने इची संबंधमें, इसी प्रकरणमें धार्मिक कथा कह भिक्षुओंको संबोधित किया-- "भिक्षुओ ! अनुमति देता हूँ चतुर्दगी, पूर्णमामी और पक्षकी अप्टमीको एकत्रित हो धर्मोपदेश कन्नंकी।"2 (३) प्रातिमोक्षकी आवृत्तिमें नियम ५---एक समय एकान्तमें स्थित विचारमग्न भगवान्के चित्त में विचार उत्पन्न हुआ--- न. जिन शिक्षा-पदों (=भिक्ष-नियमों ) को मने भिक्षुओंके लिये विधान किया है उन्हें लेकर प्रा ति मोक्ष की आवृनिकी अनुमनि ई । यही उनका उपो न थ ब. मं हो। तब भगवान्ने सायंकाल एकान्त चिन्ननमे उठनी संबंधर्म, इसी प्रकरणमं धार्मिक कथा कह भिक्षुओको संबोधित किया-- "भिक्षुओ ! आज यान्नमें स्थित विचारमग्न मेने चित्त में विचार उत्पन्न हुआ--क्यों न, जिन शिक्षा-पदोको मन भिक्षुओंके चिये विधान किया है. उन्हें लेकर प्रा ति मोक्ष को आवृत्तिकी अनुमति दूँ । "भिक्षुओ ! अनुमति देता है. प्रानिमोक्षकी आवृनिकी। "औन भिक्षओ ! इस प्रकार आवृत्नि करनी चाहिये--चतुर समर्थ भिक्षु मंघको मूचित करे- जप्नि---भन्ने ! संघ भेरी (वात) सुने । यदि बघ ठीक नमजे तो उपोमथ करे और प्रा नि मोक्ष की आवृत्नि करे--'संघका बया है। पूर्व वृत्य ? आयुष्मानो ! (अपनी आचार-) गुद्धिको कहो, ' प्रकट करना उसके लिये अच्छा होता है।"4 प्राति मोक्ष (: पानिमोबग्न). प्रानि = आदि, मुग्ध-प्रमुन्ध (= प्रधान) । यह भलायोमें प्रमुख ..दलिय शानिमाग्य कहा जाता है। (१) प्रातिमोक्षकी श्रावृनिमें दिन-नियम |---'क्यों