पृष्ठ:विनय पिटक.djvu/१९२

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२०३।१] प्रातिमोक्षकी आवृत्ति [ १४५ (६) सीमाके भीतर दूसरी सीमा नहीं १--उन समय प ड्व र्गी य भिक्षु सीमाके भीतर सीमा डालते थे। भगवान्से यह वात कही-- "भिक्षुओ! जिनकी सीमा पहले करार दी गई है उनका वह काम धर्मानुसार अटूट और क्यार्थ है । भिक्षुओ! जिनकी नीमा पीछे कगर दी गई है उनका वह काम धर्म-विरुद्ध, टूटने लायक, अयथार्थ है । भिक्षुओ ! नीमाके भीतर सीमा न डालनी चाहिये । जो डाले उसे दु रक ट का दोष हो।" 2 I २--उस समय पवर्गीय भिक्षु सीमामें सीमा लगाते थे। भगवान्से यह बात कही- "भिक्षुओ! जिनकी सीमा पहले करार दी गई उनका काम धर्मानुकूल, अटूट, यथार्थ है। जिनकी सीमा पीछे करार दी गई उनका काम धर्मविरुद्ध, टूटने लायक, अयथार्थ है । भिक्षुओ! सीमामें नीमा नहीं लगानी चाहिये । जो लगाये उसे दुवक ट का दोप हो। भिक्षुओ ! अनुमति देता हूँ, सीमाको कार देते वक्त बीच में फासिला रखकर सीमा करार देनेकी।" 22 1 ७ ) उपोसथोंकी संख्या १--उस समय भिक्षुओके (मनमें) ऐसा हुआ--कितने उपोसथ हैं ? भगवान्से यह बात वही- "भिक्षुओ! चतुर्दगी, पंचदशी ( - पूर्णमानी) के यह दो उयोसथ हैं, ...23 २--भिक्षुओंके (मनमें ) यह हुआ--'कितने उपोन्मथ कम है ?' भगवान्ने यह बात कही "भिशुओ ! यह चार उपोपथ बर्म है : (१) (संघके कुछ) भागका धर्म-विरुद्ध (= नियम विगत) उपायथ वर्म करना; (२) समग्र (संघ) का धर्म-विरुळ उपोमय कर्म करना; (३) भागका धर्मानुकूल उपायथ कन्ना; (४) समग्रका धर्मानुकूल उपोमय गर्म करना। उनमें भिक्षुओ! जो यह धर्म-विर (छ) भागका उपोयथ कर्म है, भिक्षुओ! इस प्रकारका उपोमय कर्म नहीं करना चाहिये। भिक्षुओ ! मने इस प्रकान्वे उपोमथकर्म (करने ) की अनुमति नहीं दी है। और भिक्षुओ ! जो यह धर्म-विर समगका उपोमध वार्म है, भिक्षुओ! इन प्रकारके उपोनय कर्मको नहीं करना चाहिये । मैने प्रकान्य उपायथ कार्गकी अनुमति नहीं दी है। और भिक्षुओ ! जो यह धर्मानुकूल भागका उपोमय न है. शिओ! इस प्रकान्य उपोनथ कर्मको नहीं करना चाहिये। मंने इस प्रकारके उपोमथ का अनुमति नहीं दी। उन भिक्षुओ! जो यह धर्मानकल ममा (नंघ) का उपोमथ कर्म है, नवानको मागम कर्मको करना चाहिये। मैंने इन प्रकारके उपोनय कर्मकी अनमति दी । मिली। जो दर पनिकन नमाया सोनप कर्म है उने काँगा-ऐमा भिक्षओ ! -प्रातिमानकी आवृत्ति और पूर्वक कृत्य ( १ ) मानिने क्रम