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पृष्ठ:विनय पिटक.djvu/१९४

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२०३५ ] दोषारोपण [ १४७ वाले भिक्षुसे विनय पूर्वी । इस प्रकार स्वयं अपने लिये सम्मति लेनी चाहिये। कैसे दूसरेको दूसरेके लिये सम्मति लेनी चाहिये ? चतुर समर्थ भिक्षु संघको सूचित करे। भन्ते ! संघ मेरी सुने--यदि संघ उचित समझे तो इस नामवाला (भिक्षु), इस नामवाले (भिक्षु) से विनय पूछे । इस प्रकार दूसरेको दूसरेके लिये सम्मति लेनी चाहिये ।" २--उस समय अच्छे भिक्षु (संघकी) सम्मतिले संघके बीच में विनय पूछते थे। पड्वर्गीय भिक्षुओंको प्रतिकूलता होती थी, नाराजगी होती थी, (और वह) वध करनेका डर दिखाते थे। भगवान्ने यह बात कही।- "भिक्षुओ! अनुमति देता हूँ, संघके बीचमें (उसकी) सम्मतिसे परिपद्को देखकर व्यक्तिकी तुलना करके विनय पूछनेकी।" 3I ३---उस समय पइ वर्गी य भिक्षु संघके बीचमें सम्मतिके विना ही विनयका उत्तर देते थे। भगवान्ने यह बात कही।-- "भिक्षुओ ! सम्मति न पाया संघके बीचमें विनयका उत्तर न देदे। जो उत्तर दे उसको दुवक टका दोष हो। भिक्षुओ ! अनुमति देता हूँ सम्मति-प्राप्तको संघके बीच में विनयका उत्तर देनेकी।" 32 "और भिक्षुओ ! इस प्रकार संयंत्रणा कन्नी चाहिये--स्वयं अपने लिये संमंत्रणा करनी चाहिये या दूसरेवो दूसरेके लिये मंत्रणा करनी चाहिये । कसे भिक्षुओ ! स्वयं अपने लिये संमंत्रणा वन्नी चाहिये ? चतुर समर्थ भिक्षु संघको सूचित करे-पूज्य संघ मेरी मुने । यदि संघ उचित समझे तो में इस नामवाले (भिक्षु) द्वारा विनय पूछनेपर उत्तर हूँ । इस प्रकार स्वयं अपने लिये संमंत्रणा करनी चाहिये । बले भिक्षुओ ! दूसरेको दूसन्के लिये संमंत्रणा करनी चाहिये ?--' -'चतुर समर्थ भिक्षु संघको यूचित करे--पूज्य संघ मेरी सुने । यदि संघ उचित समझे तो उस नामवाला (भिक्षु) इस नामवाले भिक्षुदाना विनय पूछने पर उत्तर दे।' इस प्रकार दूसरेको दूसरेके लिये नमंत्रणा करनी चाहिये।" ४--उस समय भले भिक्षु सम्मति पाकर संघके वीचमें विनयका उत्तर देते थे। षड्वर्गीय भिक्षुओं- को निकालना और नागजगी होती थी, (और वह) वध करनेका डर दिखलाते थे। भगवान्गे यह बात कही।-- "भिक्षओ ! अनुमति देता हूँ संघदे दीचमें सम्मति-प्राप्त द्वारा परिषद्की देख भालकर व्यक्ति- की तुलनाकार विनयवे उत्तर देनेकी।" (,) अवकाश लेकर दोपारोप करता 1