सामग्री पर जाएँ

पृष्ठ:विनय पिटक.djvu/१९५

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

! - १४८ ] ३-महावग्ग [ २०३१ नहीं करना चाहिये, जो कराये उसे दुवकटका दोप हो। भिक्षुओ! अनुमति देता हूँ व्यक्तिको नोलकर अवकाश करानेकी।"36 (६) नियम-विरुद्ध कामके लिये फटकार १-उस समय प ड व र्गी य भिक्षु संघके बीचमें अधर्मका (=सभाके नियमके विन्द्र) काम करते थे। भगवान् से यह बात कही।-- "भिक्षुओ! अधर्मका काम नहीं करना चाहिये । जो करे उमे दुक्कटका दोप हो।"37 तिसपर भी अधर्मका काम करते ही थे। भगवान्मे यह बात कही।- "भिक्षुओ! अनुमति देता हूँ अधर्मका काम करनेपर धिक्काग्नेकी।" 58 २--उस समय भले भिक्षु पड्वर्गीय भिक्षुओंको अधर्मके काम करनेपर धिक्कारते थे । पञ्- वर्गीय भिक्षु द्रोह करते नाराज़ होते थे और वध करनेकी धमकी देते थे। भगवान्से यह बात कही।- "भिक्षुओ ! अनुमति देता हूँ देखेको प्रगट करनेकी।" 39 ३--उन्हीं षड्वर्गीय (भिक्षुओं) के पास देखेको प्रकट करते थे (इसपर) पड्वर्गीय भिक्षु द्रोह करते, नाराज होते और बधकी धमकी देते थे। भगवान्से यह बात कही।- "भिक्षुओ! अनुमति देता हूँ चार पाँच (व्यक्तियों) द्वारा धिक्कारनेकी और दो तीन द्वारा देखेको प्रकट करनेकी; और एकको 'यह मुझे पसन्द नहीं है' ऐसा अधिष्ठान करनेकी।" 40 (७) प्रातिमोक्षको ध्यानसे सुनाना उस समय षड्वर्गीय भिक्षु संघके बीचमें प्रातिमोक्षका पाठ करते हुए जानबूझकर नहीं सुनाते थे। भगवान्से यह बात कही।-- "भिक्षुओ ! प्रातिमोक्ष पाठ करनेवालेको जानबूझकर-न-सुनाना नहीं करना चाहिये । जो न सुनाये उसे दुक्कटका दोष होता है।" 41 (८) प्रातिमोक्षकी आवृत्तिमें स्वर-नियम उस समय आयुष्मान् उ दा यि संघके प्रातिमोक्ष-पाठ करनेवाले थे। उनका स्वर कौवे जैसा था। तव आयुष्मान् उ दा यि को ऐसा हुआ--'भगवान्ने विधान किया है प्रातिमोक्ष-पाठ करने वालेको (जोरसे) सुनानेका; और मैं काक जैसे स्वरवाला हूँ। मुझे कैसे करना चाहिये ?' भगवान्से यह बात कही।-- "भिक्षुओ ! अनुमति देता हूँ, प्रातिमोक्ष-पाठ करनेवालेको (जोरसे) सुनानेके लिये कोशिश करनेकी, कोशिश करनेवालेको दोप नहीं।"42 (९) कहाँ और कब प्रातिमोक्षकी आवृत्ति निषिद्ध है १-उस समय देवदत्त गृहस्थोंसे युक्त परिपर्दो प्रातिमोक्ष-पाठ करता था । भगवान्से यह बात कही। "भिक्षुओ! गृहस्थ-युक्त परिपझै प्रातिमोक्ष-पाठ नहीं करना चाहिये। जो पाठ करे उसे दुक्कटका दोप हो।” 43 २--उस समय पड्वर्गीय भिक्षु विना कहे ही संघके बीचमें प्रातिमोक्षका पाठ करते थे। भग- वान्से यह बात कही।-- "भिक्षुओ! विना प्रार्थना किये संघके बीचमें प्रातिमोक्ष-पाठ नहीं करना चाहिये। जो पाठ करे उसे दुक्कटका दोप हो । भिक्षुओ ! अनुमति देता हूँ स्थविरके आश्रयने प्रातिमोक्षकी।" 44 अन्यतीथिक भाणवार समाप्त ॥१॥ -