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पृष्ठ:विनय पिटक.djvu/१९६

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- २०३।११ ] काल और अंक विद्या [ १४९ २-चोदनावत्य तब भगवान् रा ज ग ह में इच्छानुसार विहार करके चोद ना व त्यु की ओर विचरनेके लिये चल पळे । क्रमशः विचरते जहाँ चोदनावत्थु था, वहाँ पहुँचे। वहाँ भगवान् चोदनावत्यु (=चोदना- वस्तु) में विहार करने थे। (१०) प्रातिमोक्षकी यावृत्ति कैसा भिन्नु करे १--उप समय एक आवासमें बहुतने भिक्षु रहते थे। वहाँका स्थविर (=वृद्ध) भिक्षु मूर्ख अजान था। वह उ पो स थ या उपोसश्र-कर्म, प्रा ति मोक्ष या प्रातिमोक्ष-पाठको नहीं जानता था। तब उन भिक्षुओं (के मनमें) यह हुआ-'भगवान्ने स्थविर (=वृद्ध) के आश्रयसे प्रातिमोक्षका विधान किया है । और यह हमारा स्थविर मूर्ख, अजान है। यह उपोमध या उपोसथ कर्म, प्रातिमोक्ष या प्राति- मोक्ष-पाठको नहीं जानता। हमें कैसे करना चाहिये ?' भगवान्ने यह बात कही- "भिक्षुओ ! अनुमति देता है, वहाँ जो भिक्षु चतुर, समर्थ हो, उसके आश्रयमें प्रातिमोक्ष हो।"45 २-उस समय उपोसथ के दिन एक आवासमें बहुतने मूर्य, अजान भिक्षु रहते थे; वह उपोसथ या उपोसथ-कर्म, प्रातिमोक्ष या प्रातिमोक्ष-पाठको नहीं जानते थे। उन्होंने स्थविरसे प्रार्थना की-'भन्ते ! न्यविर प्रातिमोक्ष-पाठ करें।' उसने उत्तर दिया--'आयो ! मेरे लिये (यह) नहीं है। दूसरे स्थविरसे प्रार्थना की-०। तीसरे स्थविरसे प्रार्थना की-"भन्ने ! न्यविर प्रातिमोक्ष-पाठ करें।' उसने भी उत्तर दिया--'आद्यो ! मेरे लिये (वह) नहीं है।' इनी प्रकान्ले मंचक (सबसे) नये (भिक्षु) तकसे प्रार्थना- की-- 'आयुष्मान् प्रातिमोक्ष-पाठ करें।' उसने भी उत्तर दिया-'भन्ने! मेरे लिये (यह) नहीं है।' भगवान से यह बात कही-- 'यदि भिक्षुओ ! एक आवागमें बहुलगे मूर्व अजान भिक्षु नहते हैं और वह उपोसथ या उपो- यथ-वार्म, प्रानिमोक्ष या प्रानिमोक्ष-पाठ नहीं जानते, वह ग्धविर ( भिक्षु) ने प्रार्थना करते हैं-- 'मन्त ! स्थविर प्रानिमोक्ष-पाट करें और वह ऐसा नहे--'मेरे लिये यह करना नहीं है।' ० इसी प्रकार संघका (सबगे ) नये (भिक्षु ) से प्रार्थना करते हैं-'आयुप्मान् ! प्रातिमोक्षका पाठ करें।' वह भी ऐसा को---'यह मेरे लिये करना नहीं है ।' तो भिक्षुओ! उन भिक्षुओंको एक भिक्षु यह कहकर चारों ओर आवान में भेजना चाहिये--जा आबुस ! संक्षेप चा विन्ताग्ने प्रातिमोभको याद करके आजा।" नब भिजओकोया हुआ 'किनके द्वारा भेजना चाहिये ? भगवान्ने कहा ।- "भिक्षुओ ! अनुमति देता हूँ थदिर भिक्षुको नये भिक्षुके दिये आमा देनेकी ।" 46 --विनय आमा देनेगर नये भिभ नहीं जाते थे। भगवान्ने यह बात कही- "मी ! दिवे आमा देने पर नीरोग (नि । को जानने इनकार नहीं करना चाहिये । नागे सुनकटका दोष हो!"4- ! !