२७३।११ ] काल और अंक विद्या [ १४९ २-चोदनावत्यु तब भगवान् रा ज गृह में इच्छानुसार विहार करके चोद ना व त्यु की ओर विचरनेके लिये चल पळे । क्रमशः विचरते जहाँ चोदनावत्यु था, वहाँ पहुँचे। वहां भगवान् चोदनाबत्यु (=चोदना- वस्तु) में विहार करते थे। (१०) प्रातिमोक्षकी यावृत्ति कैसा भिक्षु करे १-उस समय एक आवासमें बहुतसे भिक्षु रहते थे। यहाँका स्थविर (=वृद्ध) भिक्षु मूर्ख अजान था। वह उ पो स थ या उपोसथ-कर्म, प्रा ति मोक्ष या प्रातिमोक्ष-पाठको नहीं जानता था। तत्र उन भिक्षुओं (के मनमें) यह हुआ--'भगवान्ने स्थविर (=वृद्ध) के आश्रयमे प्रातिमोक्षका विधान किया है । और यह हमारा स्थविर मूर्ख, अजान है। यह उपोमध या उपोसथ कर्म, प्रातिमोक्ष या प्राति- मोक्ष-पाठको नहीं जानता। हमें कैसे करना चाहिये ?' भगवान्मे यह बात कही- "भिक्षुओ ! अनुमति देता है, वहाँ जो भिक्षु चतुर, समर्थ हो, उसके आश्रयमें प्रातिमोभ हो।"45 २-उस समय उपोसथ के दिन एक आवागमें बहतने मूर्य, अजान भिक्षु रहते थे; वह उपोसथ या उपोसथ-कर्म, प्रातिमोक्ष या प्रातिमोक्ष-पाठको नहीं जानते थे। उन्होंने स्थविरने प्रार्थना की-'भन्ते ! स्थविर प्रातिमोक्ष-पाठ करें।' उसने उत्तर दिया--'आवुलो ! मेरे लिये (यह) नहीं है।' दूसरे स्थविरसे प्रार्थना की- । तीसरे स्थबिरसे प्रार्थना की-"भन्ले ! स्थविर प्रातिमोक्ष-पाठ करें।' उसने भी उत्तर दिया-'आबुसो ! मेरे लिये (यह) नहीं है।' इसी प्रकाग्ने संघके (सबसे ) नये (भिक्षु) तकसे प्रार्थना- की- 'आयुप्मान् प्रातिमोक्ष-पाठ करें।' उसने भी उत्तर दिया--'भन्ने ! मेरे लिये (यह) नहीं है।' भगवान्से यह बात कही- 'यदि भिक्षुओ! एक आवासमें बहुतमे मूर्ख अजान भिक्षु रहते हैं और वह उपोसथ या उपो- सथ-कर्म, प्रातिमोक्ष या प्रातिमोक्ष-पाठ नहीं जानते, वह स्थविर (: भिक्षु) से प्रार्थना करते हैं- 'भन्ते ! स्थविर प्रातिमोक्ष-पाठ करें' और वह ऐसा कहे--'मेरे लिये यह करना नहीं है।' ० इसी प्रकार संघके (सबसे) नये (भिक्षु) से प्रार्थना करते हैं—'आयुप्मान् ! प्रातिमोक्षका पाठ करें।' वह भी ऐसा कहे-'यह मेरे लिये करना नहीं है ।' तो भिक्षुओ! उन भिक्षुओंको एक भिक्षु यह कहकर चारों ओर आवासमें भेजना चाहिये -जा आवुस ! संक्षेप या विस्तारसे प्रातिमोक्षको याद करके आजा।" तब भिक्षुओंको ऐसा हुआ 'किसके द्वारा भेजना चाहिये ?' भगवान्से कहा।- "भिक्षुओ ! अनुमति देता हूँ स्थविर भिक्षुको नये भिक्षुके लिये आज्ञा देनेकी।" 46 ३-स्थविरके आज्ञा देनेपर नये भिक्षु नहीं जाते थे। भगवान्से यह बात कही- "भिक्षुओ ! स्थविरके आज्ञा देनेपर नीरोग (भिक्षु) को जानेसे इनकार नहीं करना चाहिये। जो जानेसे इनकार करे उसे दुक्कटका -राजगृह (११) काल और अंककी विद्या सीखनी चाहिये ?-तब भगवान् चो द ना व त्थ में इच्छानुसार विहार करके फिर राजगृह चले आये। उस समय भिक्षाटन करते भिक्षुओंसे लोग पूछते थे--'भन्ते ! पक्षकी (आज) कौन (तिथि) है ?' भिक्षु ऐसा बोलते थे—'आवुसो ! हमें मालूम नहीं।' लोग हैरान.. होते थे--'यह शाक्य-पुत्रीय श्रमण पक्ष- की गणना मात्रको भी नहीं जानते । यह और भली वात क्या जानेंगे !' भगवान्से यह बात कही।- "भिक्षुओ ! अनुमति देता हूँ पक्षकी गणना सीखनेकी।" 48 तव भिक्षुओंके (मनमें) यह हुआ-'किनको पक्ष-गणना सीखनी चाहिये ?' भगवान्से यह बात कही।- "भिक्षुओ ! अनुमति देता हूँ सबको ही पक्ष-गणना सीखनेकी ।"49 दोप हो।" 47 3
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