सामग्री पर जाएँ

पृष्ठ:विनय पिटक.djvu/१९९

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

so १५० ] ३-महावग्ग [ २०३।१३ २-उस समय लोग भिक्षाटन करते भिक्षुओंसे पूछते थे-'भन्ते ! भिक्षु कितने हैं?' भिक्षु ऐसा बोलते थे--'आवुसो ! हमें मालुम नहीं।' लोग हैरान.. होते थे—'यह शाक्य-पुत्रीय श्रमण एक दूसरेको भी नहीं जानते और यह क्या किसी भली बातको जानेंगे !' भगवान्से यह बात कही।- "भिक्षुओ ! अनुमति देता हूँ, भिक्षुओंके गिननेकी।" ३--तब भिक्षुओंके (मनमें) यह हुआ---'भिक्षुओंकी गणना अव करनी चाहिये ?' भगवान्से यह बात कही।-- "भिक्षुओ! अनुमति देता हूँ उपोसथके दिन नाम लेकर या ग ला का बाँटकर गिन्ती करनेकी।" 51 (१२) उपोसथके समयकी पूर्वसे सूचना १--उस समय आज उपोसथ है--यह न जानकर दूरके गाँवको भिक्षाटनके लिये चले जाते थे और वह (उपोसथमें) प्रातिमोक्षके पाठ करते वक्त भी पहुँचते थे, पाठके समाप्त हो जानेपर भी पहुँचते थे।--भगवान्से यह बात कही।- "भिक्षुओ ! अनुमति देता हूँ, आज उपोसथ है, इसको वतलानेकी।" 52 २-तब भिक्षुओंके (मनमें) यह हुआ-'किसको कहना चाहिये ?'-भगवान्से यह वात कही।- "भिक्षुओ! अनुमति देता हूँ अधिक बूढ़े स्थविर भिक्षुको वतलानेकी।" 53 ३-उस समय एक अधिक वृद्ध स्थविर याद नहीं रखता था। भगवान्से यह बात कही।- "भिक्षुओ ! अनुमति देता हूँ, भोजनके वक्त वतलानेकी।" 54 ४--भोजनके समय भी नहीं याद रखता। भगवान्से यह बात कही।- "भिक्षुओ! अनुमति देता हूँ, जिस समय याद हो उसी समय बतलानेकी।"55 (१३) उपोसथागारकी सफाई आदि १-(क) उस समय एक आवासमें उपोसथागार मलिन रहता था। नये आनेवाले भिक्षु हैरान.. होते थे-'क्यों भिक्षु उपोसथागारमें झाळू नहीं देते !' भगवान्से यह बात कही।- "भिक्षुओ ! अनुमति देता हूँ उपोसथागारमें झाळू देनेकी।" 56 (ख) तव भिक्षुओंको ऐसा हुआ-'किसे उपोसथागारमें झाळू देना चाहिये ?' भगवान्से यह बात कही।- "भिक्षुओ! अनुमति देता हूँ, स्थविर भिक्षुको नये भिक्षुके लिये आज्ञा देनेकी।"57 (ग) स्थविर भिक्षुके आज्ञा देनेपर नये भिक्षु नहीं झाळू देते थे। भगवान्से यह बात कही। "भिक्षुओ! स्थविर भिक्षुके आज्ञा देनेपर नीरोग होते झाळू देनेसे इनकार नहीं करना चाहिये। जो झाळू देनेसे इनकार करे उसे दुक्कटका दोप हो।"58 २-(क) उस समय उपोसथागारमें आसन विछा नहीं होता था। भिक्षु भूमिपर ही बैठ जाते थे, जिससे शरीर भी, चीवर भी मैले होते थे। भगवान्से यह बात कही।- "भिक्षुओ ! अनुमति देता हूँ, उपोसथागारमें आसन विछानेकी।"59 (ख) तव भिक्षुओंको ऐसा हुआ–'उपोसथागारमें किसे आसन बिछाना चाहिये ?' भग- वान्से यह बात कही।- "भिक्षुओ! अनुमति देता हूँ, स्थविर भिक्षुको नये भिक्षुके लिये आज्ञा देनेकी।" 60 (ग) स्थविर भिक्षुके आज्ञा देनेपर भी नये भिक्षु नहीं मानते थे। भगवान्से यह बात कही।- "भिक्षुओ! स्थविर भिक्षुके आज्ञा देनेपर नीरोग होते इनकार नहीं करना चाहिये। जो इन- कार करे उसे दुक्कटका दोप हो।" 61 !