पृष्ठ:विनय पिटक.djvu/२०१

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१५२ ] ३-महावग्ग [ 35213 (३) उपोसथ या संघकर्ममें अनुपस्थित व्यक्तिका कर्तव्य १-तब भगवान्नं भिक्षुओंको संबोधित किया-- "भिक्षुओ! (सव लोग) जमा हो जाओ, संघ उपोसथ करेगा।" ऐसा कहनेपर एक भिक्षुने भगवान्से यह कहा- "भन्ते ! एक भिक्षु रोगी है। वह नहीं आया है।" "भिक्षुओ ! अनुमति देता हूँ, रोगी भिक्षुको, (अपनी) शुद्धि (की बात) भेजनेकी।" 65 "और भिक्षुओ ! (शुद्धिकी वात) इस प्रकार भेजनी चाहिये-उस रोगीको एक भिक्षुके पास जाकर उत्त रा संग को एक कंधेपर कर, उकळू बैट, हाथ जोळ ऐसा कहना चाहिये-'शुद्धि देता हूँ, मेरी शुद्धिको ले जाओ, मेरी शुद्धिको (संघमें जाकर) कहना।' इस प्रकार कायासे सूचित करे, वचनसे सूचित करे, काय-वचनसे सूचित करे तो शुद्धि भेजी गई (समझी) जाती है। यदि न कायासे सूचित करे, न वचनसे सूचित करे, न काय-वचनसे सूचित करे तो शुद्धि भेजी गई नहीं होती। इस प्रकार यदि कर सके तो ठीक, यदि न कर सके तो भिक्षुओ ! वह भिक्षु चारपाई, या चौकीपर (वैठाकर) संघके बीचमें लाया जाय, और उपोसथ करे। यदि भिक्षुओ! रोगीके परिचारक भिक्षुओंको ऐसा हो—'यदि हम रोगीको उसकी जगहसे हटायेंगे तो रोग वढ़ जायगा या मृत्यु होगी', तो भिक्षुओ ! रोगीको उस जगहसे नहीं हटाना चाहिये। (बल्कि) संघको वहाँ जाकर उपोसथ करना चाहिये, किन्तु संघके एक भागको उपोसथ नहीं करना चाहिये ; यदि करे तो दुक्क ट का दोप हो। "यदि भिक्षुओ! शुद्धि (की बात कह) देनेपर शुद्धि ले जानेवाला वहाँसे चला जाय तो शुद्धि दूसरेको देनी चाहिये । यदि भिक्षुओ ! शुद्धि (की वात कह) देनेपर शुद्धि ले जानेवाला (भिक्षु-पनसे) निकल जाये या मर जाये या श्रामणेर वन जाये, या भिक्षु-नियमको त्याग दे, या अन्तिम अपराध (-- पा रा जि क) का अपराधी हो जाये, या पागल विक्षिप्त-चित्त, मूर्छित हो जाये, या दोष न स्वीकार करनेसे उ त्क्षिप्त क हो जाये, या दोष या दोषके कामसे उत्क्षिप्तक हो जाये, या बुरी धारणाके न छोळनेसे उत्क्षिप्तक माना जाने लगे, पंडक माना जाने लगे, चोरीसे भिक्षु-वस्त्र पहननेवाला माना जाने लगे, या तीथिकोंमें चला गया हो, या तिर्यक् योनिमें चलागया माना जाने लगे,मातृघातक ०, पितृघातक०, अर्हत्- घातक०, भिक्षुणी-दूषक०, संघमें फूट डालनेवाला०, (वुद्धके शरीरसे) लोह निकालनेवाला, (स्त्री- पुरुष) दोनोंके लिंगवाला माना जाने लगे, तो दूसरेको शुद्धि-प्रदान करनी चाहिये। भिक्षुओ! यदि शुद्धि ले जानेवाला शुद्धि दे देनेके वाद चला जाये तो शुद्धि नहीं ले जाई गई समझनी चाहिये। भिक्षुओ! यदि शुद्धि ले जाने वाला शुद्धिके दे देनेके बाद रास्तेमें ही (भिक्ष आश्रमसे) निकल जाय०१ (स्त्री-पुरुप) दोनोंके लिंगवाला माना जाने लगे तो शुद्धि ले जाई गई समझनी चाहिये । यदि भिक्षुओ! शुद्धि ले जानेवाला शुद्धि दे देनेके वाद संघमें जाकर सो जानेसे नहीं बतलाता, प्रमाद करनेसे नहीं बोलता, (अपराध) करनेसे नहीं बोलता तो शुद्धि ले जाई गई होती है। और शुद्धि ले जानेवालेको दोप नहीं। यदि भिक्षुओ ! शुद्धि ले जानेवाला शुद्धिके दे देनेके वाद संघमें पहुँचकर जान बूझकर नहीं बतलाता, तो भी शुद्धि ले जाई गई होती है; और शुद्धि ले जानेवालेको दुक्कटका दोप होता है।" 66 २-तव भगवान्ने भिक्षुओंको संबोधित किया। "भिक्षुओ! जमा हो। संघ (विवाद-निर्णय आदि) कर्मको करेगा।" ऐसा कहने पर एक भिक्षुने भगवान्से यह कहा-“भन्ते ! एक भिक्षु रोगी है, नहीं आया है।" "भिक्षुओ ! अनुमति देता हूँ रोगी भिक्षुको (अपना) छंद (=सम्मति, vote) भेजने की।" 67 स १ पहलेहीकी तरह दुहराना चाहिये।