पृष्ठ:विनय पिटक.djvu/२००

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२०४।२] अमाधारण उपोसय [ १५१ ३--(क) उस समय उपोसथागारमें दीपक नहीं होता था। भिक्षु अंधकारमें गरीरको भी चहल देते थे, चीवरको भी चहल देते थे। भगवान्से यह बात कही।- "भिक्षुओ ! अनुमति देता हूँ, उपोसथागारमें दीपक जलानेकी।" १ ० 1 62 ४-असाधारण अवस्थामें उपोसथ (१) लम्बी यात्राकं लिये बाबा उस समय वहुतने मूर्व अजान भिक्षुओंने लंची यात्राको जाते वक्त आचार्य उपाध्यायसे नहीं पूछा । भगवान्ले यह बात कही।- "भिक्षुओ! यहाँ बहुतने मर्य अजान भिक्षु लम्बी यात्रा जाते वक्त आचार्य उपाध्यायले नहीं पूछते । भिक्षुओ! उन्हें आचार्य उपाध्यायसे पूछना चाहिये कि वह कहाँ जायेंगे किसके साथ जायेंगे। भिक्षुओ ! यदि वह मूर्ख अजान भिक्षु दूसरे मूर्य अज्ञान भिक्षुओंको साथी बतलायें तो आचार्य उपाध्यायोंको अनुमति नहीं देनी चाहिये । यदि अनुमति दें तो दुक्कटका दोप हो; और यदि भिक्षुओ! वह मूर्ख अजान भिक्षु आचार्य उपाध्यायकी अनुमति बिना ही चले जाये तो उन्हें दुक्कटका दोप हो।" 63 (२) प्रातिमोक्ष जाननेवाला भिक्षु न होनेपर आवासमें नहीं रहना चाहिये “(क) यदि भिक्षुओ ! एक आवासमें बहुतसे मूर्ख अजान भिक्षु रहते हैं और वह उपोसथ या उपो- सथ कर्म, प्रातिमोक्ष या प्रातिमोक्ष-पाठ नहीं जानते, वहाँ दूसरे बहुश्रुत (= विद्वान्), आ ग म ( बुद्ध उपदेश) को जाननेवाले हैं, धर्म ध र (: बुद्धके सुत्तोंको जाननेवाले), विनयधर (=भिक्षु नियमोंको याद रखनेवाले), मा त्रि का घर (= मुत्तोंमें आई दर्शन-संबंधी पंक्तियोंको याद रखनेवाले), पंडित, चतुर, मेधावी, लज्जाशील, संकोची और सीख चाहने वाले भिक्षु आवे तो भिक्षुओ! उन भिक्षुओंको उस भिक्षुका संग्रह करना चाहिये अनुग्रह करना चाहिये, (आवश्यक वस्तुएँ) प्रदान करनी चाहिए। (स्नान) चूर्ण, मिट्टी, दतौन, मुंह धोनेके पानीसे सेवा करनी चाहिये। यदि संग्रह अनुग्रह, (आवश्यक वस्तु) प्रदान, चूर्ण, मिट्टी, दतौन, मुंह धोनेका पानी द्वारा सेवा न करे तो दुक्कटका दोप हो। (ख) यदि भिक्षुओ! किसी आवासमें उपोसथके दिन बहुतसे मूर्ख अजान भिक्षु रहते हैं और वह उपोसथ या उपोसथ कर्म, प्रातिमोक्ष या प्रातिमोक्ष-पाठको नहीं जानते तो भिक्षुओ उन भिक्षुओंको आवासके चारों ओर (यह कहकर) एक भिक्षुको भेजना चाहिये-आवुस ! जा संक्षेप या विस्तारसे प्रातिमोक्षको सीख कर चला आ । इस प्रकार यदि हो जाय तो अच्छा नहीं तो उन सभी भिक्षुओंको, जहाँ उपोसथ या उपो- सथ-कर्म, प्रातिमोक्ष या प्रातिमोक्ष-पाट जाननेवाले रहते हैं उस आवासमें चला जाना चाहिये; यदि न चले जायें तो दुक्कटका दोप हो। (ग) यदि भिक्षुओ ! किसी आवासमें वहुतसे मूर्ख अजान भिक्षु वर्षावास करते हैं, वह उपोसथ या उपोसथ-कर्म, प्रातिमोक्ष या प्रातिमोक्ष-पाठ नहीं जानते, तो भिक्षुओ ! उन भिक्षुओंको (अपनेमेसे) एक भिक्षुको (यह कहकर) आवासके चारों ओर भेजना चाहिये-जा आवुस, संक्षेप या विस्तारसे प्रातिमोक्षको सीख आ । इस प्रकार यदि मिले तो अच्छा, नहीं तो भिक्षुओ! उन्हें उस आवासमें वर्पावास नहीं करना चाहिये; यदि वर्षावास करें तो उन्हें दुक्कटका दोप हो ।” 64 १ आसन और झाळू देनेके प्रकरणके समानही यहाँ भी पाठ है ।