१५६ ] ३-महावग्ग [ २०४८ "भिक्षुओ ! अधुरे दोप (की प्रति दे श ना) को नहीं ग्रहण करना चाहिये। जो ग्रहण करे उसे दुक्क ट का दोप हो ।" 8I २--उस समय एक भिक्षुको प्रातिमोक्ष-पाटके समय दोप याद आया। तब उस भिक्षुको ऐसा हुआ-'भगवान्ने विधान किया है कि सदोप (भिक्षु) को उ पो स थ नहीं करना चाहिये, और मैं सदोष हूँ। मुझे कैसा करना चाहिये ?' भगवान्मे यह बात कही।- "भिक्षुओ! यदि किसी भिक्षुको प्रातिमोक्ष-पाठके समय दोप याद आये तो भिक्षुओ ! उस भिक्षुको अपने पासके भिक्षुसे ऐसा कहना चाहिये-'आबुस ! मैंने इस नामवाले दोपको किया है। यहाँसे उटकर मैं उस दोषका प्रतिकार करूँगा ।' (यह) कह उ पो स थ करना चाहिये, प्रातिमोक्ष सुनना चाहिये; उसके लिये उपोसथमें रुकावट न डालनी चाहिये। यदि भिक्षुओ ! प्रातिमोम-पाठके समय किसी भिक्षुको दोषके विषयमें संदेह हो तो उस भिक्षुको पासके भिक्षुसे ऐसा कहना चाहिये- 'आवुस ! मुझे इस नामवाले दोषके विपयमें संदेह है। जव संदेह-रहित हूँगा तब उस दोपका प्रतिकार करूँगा।' (यह) कह उपोसथ करना चाहिये, प्रातिमोक्ष सुनना चाहिये । उसके लिये उपोसयको छोळना नहीं चाहिये।" 82 ३--(क). उस समय एक आवासमें उपोसथके दिन सभी संघसे अधूरा दोप हुआ था। तब उन भिक्षुओंको ऐसा हुआ-'भगवान्ने विधान किया है कि अधूरे दोपकी प्रति दे श ना नहीं करनी चाहिये, न अधूरे दोष (की प्रति दे श ना) को ग्रहण करना चाहिये। और इस सारे संघसे अधूरा दोप हुआ है। हमें कैसा करना चाहिये ?' भगवान्से यह बात कही- "भिक्षुओ! यदि किसी आवासमें उपोसथके दिन सारे संघसे अधरा (=सभाग) दोप हुआ हो, तो भिक्षुओ ! उन भिक्षुओंको (अपनेमेसे) एक भिक्षुको पासवाले आवासोंमें (यह कहकर) भेजना चाहिये-'आवुस ! जा, इस दोषका प्रतिकार कर चला आ। फिर हम तेरे पास दोपका प्रतिकार करेंगे।' यदि ऐसा हो सके तो अच्छा, न हो सके तो चतुर समर्थ भिक्षु संघको सूचित करे—'भन्ते ! संघ मेरी सुने-इस सारे संघसे अधूरा दोष हुआ है (संघ) जब दूसरे दोष-रहित शुद्ध भिक्षुको देखेगा तो उसके पास उस दोषका प्रतिकार करेगा।' (यह) कह उपोसथ करना चाहिये, प्रातिमोक्ष पढ़ना चाहिये। उसके लिये उपोसथको छोळ नहीं देना चाहिये। 83 (ख). “यदि भिक्षुओ! किसी आवासमें उपोसथके दिन सारे संघको सभाग दोपके होनेमें सन्देह हो गया हो तो चतुर समर्थ भिक्षु संघको सूचित करे-भन्ते ! संघ मेरी सुने। इस सारे संघको सभाग दोषके विषयमें संदेह है। जब वह संदेह-रहित होगा तो उस दोषका प्रतिकार करेगा।' (यह) कह उपोसथ करे। प्रातिमोक्षका पाठ करे उसके लिये उपोसथको छोळ नहीं देना चाहिये । 84 (ग). “यदि भिक्षुओ ! एक आवासमें वर्षावास करते संघसे सभाग दोप हो गया हो तो उन भिक्षुओंको (अपनेमेसे) एक भिक्षुको (यह कहकर) आस-पासके आवासमें भेजना चाहिये—'जा आवुस ! उस दोपका प्रतिकार कर चला आ; (फिर) हम तेरे पास उस दोपका प्रतिकार करेंगे।' यदि यह हो सके तो अच्छा है ; न हो सके तो एक भिक्षुको सप्ताह भरके लिये (यह कहकर) भेजना चाहिये ---'जा आवुस ! उस दोपका प्रतिकार कर चला आ; फिर हम तेरे पास दोपका प्रतिकार करेंगे। 85 ४---उस समय एक आवासमें सारे संघसे सभाग दोप हुआ था और वह उस दोपके नाम-गोत्र को नहीं जानता था। तव वहाँ एक दूसरा वहु-श्रुत, आगमज्ञ, धर्म-धर, विनय-धर, मात्रिका-धर, पंडित, चतुर, मेधावी, लज्जा-शील, संकोची और सीखनेकी चाहवाला भिक्षु आया। तब उसके पास एक भिक्षु गया। जाकर उस भिक्षुसे यह बोला- "
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