२०५।१ (b) ] नियम-विरुद्ध उपोसथ [ १५९ भिक्षु एकत्रित हों० और उनके प्रातिमोक्ष-पाठ कर चुकनेपर किन्तु परिषद्के कुछ लोगोंके रहते तथा कुछ लोगोंके उठ जानेपर दूसरे आश्रमवासी जो संख्यामें उनके समान हों आजायँ तो भिक्षुओ ! जो पाठ हो चुका सो ठीक; उनके पास शु द्धि वतलानी चाहिये । पाठ करनेवाले (भिक्षुओं) को दोष नहीं । 97 (१२) "यदि भिक्षुओ! किसी आवासमें उपोसथके दिन बहुतसे --चार या अधिक-आश्रम- वासी भिक्षु एकत्रित हों और उनके प्रातिमोक्ष-पाठ कर चुकनेपर किन्तु परिपके कुछ लोगोंके रहते तथा कुछ लोगोंके उठ जानेपर दूसरे आश्रमवासी भिक्षु जो संख्यामें उनसे कम हों आजायँ तो भिक्षुओ ! पाठ हो चुका सो ठीक; उनके पास शुद्धि वतलानी चाहिये । पाठ करनेवाले (भिक्षुओं) को दोप नहीं। 98 ५-(१३) "यदि भिक्षुओ! किसी आवासमें उपोसथके दिन बहुतसे–चार या अधिक- आश्रमवासी भिक्षु एकत्रित हों और उनके प्रातिमोक्ष-पाठ कर चुकनेपर तथा सारी परिपद्के उठ जानेपर दूसरे आश्रमवासी भिक्षु जो संख्यामें उनसे अधिक हों, आजायँ तो भिक्षुओ ! उन भिक्षुओंको फिरसे प्रातिमोक्ष-पाठ करना चाहिये। पाठ करनेवाले (भिक्षुओं) को दोष नहीं । 99 (१४) "यदि भिक्षुओ ! किसी आवासमें उपोसथके दिन बहुतसे–चार या अधिक- आश्रमवासी भिक्षु एकत्रित हों और उनके प्रातिमोक्ष-पाठ कर चुकनेपर तथा सारे परिषद्के उठ जानेपर दूसरे आश्रमवासी भिक्षु जो संख्यामें उनके समान हों, आजायँ तो भिक्षुओ! पाठ हो चुका सो ठीक; उनके पास शुद्धि वतलानी चाहिये । पाठ करनेवाले (भिक्षुओं) का दोष नहीं। 100 (१५) “यदि भिक्षुओ! किसी आवासमें उपोसथके दिन बहुतसे–चार या अधिक- आश्रमवासी भिक्षु एकत्रित हों और उनके प्रातिमोक्ष-पाठ कर चुकनेपर तथासारी परिषद्के उठ जाने पर दूसरे आश्रमवासी भिक्षु जो संख्यामें उनसे कम हों, आजायँ,तो भिक्षुओ! पाठ हो चुका सो ठीक; उनके पास शुद्धि बतलानी चाहिये। पाठ करनेवाले (भिक्षुओं) का दोष नहीं।" IOI पन्द्रह अदोषता समाप्त । (b) अन्य अाश्रमवासियोंकी अनुपस्थितिको जानकर किया गया दोषयुक्त उपोसथ -(१) “यदि भिक्षुओ! किसी आवासमें बहुतसे–चार या अधिक—आश्रमवासी भिक्षु उपोसथके दिन एकत्रित हों और वे जानें कि कुछ आश्रमवासी भिक्षु नहीं आये। वे धर्म समझ, विनय समझ, (संघका एक) भाग होते भी (अपनेको) समग्र समझ उपोसथ करें, प्रातिमोक्षका पाठ करें और उनके प्रातिमोक्ष-पाठ करते समय दूसरे आश्रमवासी भिक्षु जो संख्यामें उनसे अधिक हैं, आजायँ, तो भिक्षुओ ! उन भिक्षुओंको फिरसे प्रातिमोक्ष-पाठ करना चाहिये और (पहले) पाठ करनेवालोंको दुक्क ट का दोप है। 102 (२) “यदि भिक्षुओ! किसी आवासमें बहुतसे–चार या अधिक-आश्रमवासी भिक्षु उपोसथके दिन एकत्रित हों० और वे जानें और उनके प्रातिमोक्ष-पाठ करते समय दूसरे आश्रमवासी भिक्षु जो संख्यामें उनके समान हों, आजायें, तो भिक्षुओ! जो पाठ होगया वह ठीक; वाकीको (वह भी) नुनें। पाठ करनेवालोंको दुक्क ट का दोप है । 103 (३) "यदि० उपोसथके दिन एकत्रित हों और वे जानें और उनके प्रातिमोक्ष-पाठ करते समय दूसरे आश्रमवानी भिक्ष जो संख्यामें उनसे कम हों, आजायँ, तो भिक्षुओ ! जो पाठ होगया वह ठीक; बाकीको (वह भी) मुनें। पाठ करनेवालोंको दुक्क ट का दोष है। 104 -(४) “यदि० उपोलधके दिन एकत्रित हों और वे जानें और उनके प्रातिमोक्ष-पाठ कर चुकनेपर दूसरे आश्रमवानी भिक्षु जो संख्यामें उनसे अधिक है, आजायें, तो भिक्षुओ! उन भिक्षुओंको
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