पृष्ठ:विनय पिटक.djvu/२११

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१६० ] ३-महावग्ग [ २१५१ (b) फिरसे प्रातिमोक्ष-पाठ करना चाहिये; और (पहले) पाठ करनेवालोंको दुक्क ट का दोप है । IOS (५) “यदि० उपोसथके दिन एकत्रित हों और वे जानें और उनके प्रातिमोक्ष-पाठ कर चुकने पर दूसरे आश्रमवासी भिक्षु जो संख्यामें उनके समान हों, आजायँ, तो भिक्षुओ ! जो पाठ हो गया वह ठीक; उनके पास शु द्धि बतलानी चाहिये । पाठ करनेवालोंको दुक्क ट का दोप है। 106 (६) “यदि० उपोसथके दिन एकत्रित हों और वे जानें और उनके प्रातिमोक्ष-पाठ कर चुकने पर दूसरे आश्रमवासी भिक्षु जो संख्यामें उनसे कम हों, आजायँ, तो भिक्षुओ! जो पाठ होगया वह ठीक; उनके पास शु द्धि वतलानी चाहिये। पाठ करनेवालोंको दुक्क ट का दोप है। 107 -(७) "यदि० उपोसथके दिन एकत्रित हों और वे जाने और उनके प्रातिमोक्ष-पाठ कर चुकनेपर किन्तु परिषद्के अभी न उठनेपर दूसरे आश्रमवासी भिक्षु जो संख्यामें उनसे अधिक हों, आजायें, तो भिक्षुओ ! उन भिक्षुओंको फिरसे प्रातिमोक्ष-पाठ करना चाहिये (पहले) पाठ करनेवालोंको दुक्क ट का दोष है। 108 (८) “यदि० उपोसथके दिन एकत्रित हों और वे जानें और उनके प्रातिमोक्ष-पाठ कर चुकनेपर किन्तु परिषद्के अभी न उठनेपर दूसरे आश्रमवासी भिक्षु जो संख्यामें उनके समान हों, आ जायँ, तो भिक्षुओ! जो पाठ होगया वह ठीक; उनके पास शुद्धि वतलानी चाहिये। पाठ करनेवालोंको दुक्क ट का दोष है । 109 (९) “यदि ० उपोसथके दिन एकत्रित हों और वे जानें ० और उनके प्रातिमोक्ष-पाठ कर चुकनेपर किन्तु परिषद्के अभी न उठने पर दूसरे आश्रमवासी भिक्षु जो संख्यामें उनसे कम हों, आजायँ, तो भिक्षुओ! जो पाठ हो गया वह ठीक; उनके पास शु द्धि बतलानी चाहिये। पाठ करने वालोंको दुक्क ट का दोष है। IIO ९-(१०) “यदि ० उपोसथके दिन एकत्रित हों और वे जानें • और उनके प्रातिमोक्ष-पाठ कर चुकनेपर किन्तु परिषद्के कुछ लोगोंके रहते तथा कुछ लोगोंके उठ जानेपर दूसरे आश्रमवासी भिक्षु जो संख्यामें उनसे अधिक हों, आजायँ, तो भिक्षुओ! उन भिक्षुओंको फिरसे प्रातिमोक्ष पाट करना चाहिये। पाठ करनेवालोंको दुक्क ट का दोष है। III (११) “यदि ० उपोसथके दिन एकत्रित हों और वे जानें ० और उनके प्रातिमोक्ष पाठ कर चुकनेपर किन्तु परिषद्के कुछ लोगोंके रहते तथा कुछ लोगोंके उठ जानेपर दूसरे आश्रमवासी भिक्षु जो संख्यामें उनके समान हों, आजायँ, तो भिक्षुओ ! पाठ हो गया वह ठीक; उनके पास शु द्धि बतलानी चाहिये । पाठ करनेवाले भिक्षुओंको दुक्कटका दोष है। II2 (१२) “यदि ० उपोसथके दिन एकत्रित हों और वे जानें ० और उनके प्रातिमोक्ष पाठ कर चुकनेपर किन्तु परिपद्के कुछ लोगोंके रहते तथा कुछ लोगोंके उठ जानेपर दूसरे आश्रमवासी भिक्षु जो संख्यामें उनसे कम हों, आजायँ, तो भिक्षुओ! पाठ हो गया वह ठीक; उनके पास शुद्धि बतलानी चाहिये । पाठ करनेवाले भिक्षुओंको दुक्क ट का दोप है। II3 १०-(१३) “यदि ० उपोसथके दिन एकत्रित हों और वे जानें ० और उनके प्रातिमोक्ष- पाठ कर चुकने तथा सारी परिपद्के उठ जानेपर दूसरे आश्रमवासी भिक्ष जो संख्यामें उनसे अधिक हों, आजायें, तो भिक्षुओ! उन भिक्षुओंको फिरसे प्रातिमोक्ष पाठ करना चाहिये। पाठ करनेवालोंको दुक्क ट का दोप है । II4 (१४) “यदि ० उपोसथके दिन एकत्रित हों और वे जानें ० और उनके प्रातिमोक्ष-पाठ कर चुकनेपर तथा सारी परिपद्के उठ जानेपर दूसरे आश्रमवासी भिक्षु जो संख्यामें उनके समान हों, आजार्य, तो भिक्षुओ! पाठ हो गया सो ठीक; उनके पास शुद्धि बतलानी चाहिये। पाठ करनेवाले भिक्षुओंको