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पृष्ठ:विनय पिटक.djvu/२१३

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१६२ ] ३-महावग्ग [ २१५१ (d) प्रातिमोक्षका पाठ कर चुकने किन्तु परिपद्के अभी न उठनेपर ० भिक्षु जो संख्यामें उनसे कम हों आ- जायें, तो भिक्षुओ! जो पाठ हो गया वह ठीक, उनके पास शुद्धि बतलानी चाहिये । पाठ करनेवालोंको दुक्क ट का दोष है। 125 १४-(१०) “यदि ० उपोसथके दिन एकत्रित हों, और वे जानें ० सन्देह-युक्त होते उपो- सथ करं ० प्रातिमोक्षका पाठ कर चुकनेपर किन्तु परिपद्के कुछ लोगोंक रहते तथा कुछ लोगोंके उठ जानेपर ० भिक्षु जो संख्यामें उनसे अधिक हों आजायें, तो भिक्षुओ! उन भिक्षुओंको फिरसे प्रातिमोज पाठ करना चाहिये । पाठ करनेवालोंको दुक्क ट का दोप है । 126 (११) “यदि ० उपोसथके दिन एकत्रित हों, और वे जानें ० सन्देह-युक्त होते उपोसय कर ० प्रातमोक्षका पाठ कर चुकनेपर किन्तु परिपक्के कुछ लोगोंके रहते तथा कुछ लोगोंके उठ जानेपर ० भिक्षु जो संख्यामें उनके समान हों आजायें तो भिक्षुओ ! जो पाठ हो गया वह ठीक; उनके पास शुद्धि बतलानी चाहिये । पाठ करनेवालोंको दुक्क ट का दोप है। 127 (१२) “यदि ० उपोसथके दिन एकत्रित हों, और वे जानें ० सन्देह-युक्त होते उपोसथ करें। प्रातिमोक्षका पाठ कर चुकनेपर तथा परिपद्के कुछ लोगोंके रहते तथा कुछ लोगोंके उठ जानेपर ० भिक्षु जो संख्यामें उनसे कम हों आजायें तो भिक्षुओ! जो पाठ हो गया वह ठीक; उनके पास शु द्धि बत- लानी चाहिये। पाठ करनेवालोंको दुक्क ट का दोप है । 128 १५-(१३) “यदि ० उपोसथके दिन एकत्रित हों, और वे जानें ० सन्देह-युक्त होते उपोसथ करें ० प्रातिमोक्षका पाठ कर चुकनेपर तथा सारी परिपक्के उठ जानेपर ० भिक्षु जो संख्यामें उनसे अधिक हों आजायें तो भिक्षुओ! उन भिक्षुओंको फिरसे प्रातिमोक्षका पाठ करना चाहिये । पाठ करने- वालोंको दुक्क ट का दोष है। 129 (१४) “यदि ० उपोसथके दिन एकत्रित हों, और वे जानें ० सन्देह-युक्त होते उपोसथ करें। प्रातिमोक्षका पाठ कर चुकनेपर तथा सारी परिषद्के उठ जानेपर ० भिक्षु जो संख्यामें उनके समान हों, आजायें तो भिक्षुओ ! पाठ हो चुका सो ठीक; उनके पास शुद्धि बतलानी चाहिये। पाठ करनेवालोंको क्क ट का दोष है। 130 (१५) “यदि ० उपोसथके दिन एकत्रित हों, और वे जानें ० सन्देह-युक्त होते उपोसथ करें । प्रातिमोक्षका पाठ कर चुकनेपर तथा सारी परिपद्के उठ जानेपर ० भिक्षु जो संख्यामें उनसे कम हों, आजायें तो भिक्षुओ ! पाठ हो चुका सो ठीक; उनके पास शुद्धि बतलानी चाहिये। पाठ करनेवालोंको दुक्कटका दोप है ।" 131 पन्द्रह संदेहयुक्त समाप्त (d) अन्य आवासिकों की अनुपस्थितिमें संकोच के साथ किया गया दोपयुक्त उपोसथ १६--(१) “यदि भिक्षुओ! किसी आवासमें बहुतसे-चार या अधिक आश्रमवासी भिक्षु उपोसथके दिन एकत्रित हों, और वे जानें कि कुछ आश्रमवासी भिक्षु नहीं आये। वह हमें उपोसथ करना युक्त ही है, अयुक्त नहीं है-ऐसे संकोचके साथ उपोसथ करें, प्रातिमोक्षका पाठ करें, और उनके प्रातिमोक्ष पाठ करते समय दूसरे आश्रमवासी भिक्षु जो संख्यामें उनसे अधिक हों आजायें, तो भिक्षुओ ! उन भिक्षुओंको फिरसे प्रातिमोक्ष पाठ करना चाहिये और (पहले) पाठ करनेवालोंको दुक्कटका दोप है। 132 (२) “यदि ० संकोचके साथ उपोसथ करें ० भिक्षु जो संख्यामें उनके समान हों आजायँ, तो भिक्षुओ! जो पाठ हो गया वह ठीक, वाकीको वह भी सुनें । पाठ करनेवालोंको दुक्कटका दोप है। 133