२०५।१ (d) ] नियम-विरुद्ध उपोसथ [ १६३ ० संकोचके साथ उपोसथ करें ० भिक्षु जो संख्याम उनसे कम हों आ जायँ, तो भिक्षुओ ! जो पाठ हो गया वह ठीक; वाकीको वह भी सुनें। पाठ करनेवालोंको दुक्क ट का दोष (३) “यदि है। 134 O १७- -(४) "यदि ० संकोचके साथ उपोसथ करें। प्रातिमोक्षका पाठ हो चुकनेपर भिक्षु जो संख्यामें उनसे अधिक हों आजाये, तो भिक्षुओ! उन भिक्षुओंको फिरसे प्रातिमोक्ष पाठ करना चाहिये । पाठ करनेवालोंको दुक्क ट का दोष है। 135 (५) “यदि ० संकोचके साथ उपोसथ करें ० प्रातिमोक्षका पाठ हो चुकनेपर ० भिक्षु जो संख्यामें उनके समान हों, आजायँ, तो पाठ हो गया वह ठीक; उनके पास शुद्धि वतलानी चाहिये । पाठ करनेवालोंको दुक्क ट का दोष है। 156 (६) "यदि ० संकोचके साथ उपोसथ करें ० प्रातिमोक्षका पाठ हो चुकनेपर ० भिक्षु जो संख्यामें उनसे कम हों, आजायँ, तो पाठ होगया वह ठीक; उनके पास शुद्धि बतलानी चाहिये। पाठ करनेवालोंको दुक्क ट का दोष है। 137 १८-(७) "यदि ० संकोचके साथ उपोसथ करें • प्रातिमोक्षका पाठ हो चुकनेपर ० किन्तु परिपद्के अभी न उठनेपर ० भिक्षु जो संख्यामें उनसे अधिक हों, आजायँ तो उन भिक्षुओंको फिरसे प्रातिमोक्षका पाठ करना चाहिये । पाठ करनेवालोंको दुक्क ट का दोष है। 138 (८) “यदि ० संकोचके साथ उपोसथ करें ० प्रातिमोक्षका पाठ हो चुकनेपर किन्तु परिपद्के अभी न उठनेपर ० भिक्षु जो संख्यामें उनके समान हों, आजायँ तो पाठ हो चुका सो ठीक, उनके पास शुद्धि वतलानी चाहिये । पाठ करनेवालोंको दुक्क ट का दोष है। 139 (९) “यदि ० संकोचके साथ उपोसथ करें ० प्रातिमोक्षका पाठ हो चुकनेपर किन्तु परिषद्के अभी न उठनेपर ० भिक्षु जो संख्या में उनसे कम हों, आ जायँ तो पाट हो चुका सो ठीक, उनके पास शुद्धि बतलानी चाहिये । पाठ करनेवालोंको दुक्क ट का दोष है । 140 (१०) “यदि ० संकोचके साथ उपोसथ करें • प्रातिमोक्षका पाठ हो चुकनेपर किन्तु परिषद्के कुछ लोगोंके रहते तथा कुछ लोगोंके उठ जानेपर ० भिक्षु जो संख्यामें उनसे अधिक हों, आ जायें, तो उन भिक्षुओंको फिरसे प्रातिमोक्षका पाठ करना चाहिये। पाठ करनेवालोंको दुक्क ट का दोप है। 141 (११) “यदि ० संकोचके साथ उपोसथ करें० प्रातिमोक्षका पाठ हो चुकनेपर किन्तु परि- पद्के कुछ लोगोंके रहते तथा कुछ लोगोंके उठ जानेपर ० भिक्षु जो संख्यामें उनके समान हों, आ जायें तो पाठ हो चुका सो ठीक ; उनके पास शुद्धि बतलानी चाहिये । पाठ करनेवालोंको दुक्कटका दोप है । 142 (१२) “यदि ० संकोचके साथ उपोसथ करें ० प्रातिमोक्षका पाठ हो चुकनेपर किन्तु परि- पवे कुछ लोगोंके रहते तथा कुछ लोगोंके उठ जानेपर ० भिक्षु जो संख्यामें उनसे कम हों, आ जाये तो पाठ हो चुका नो ठीक; उनके पास शुद्धि वतलानी चाहिये । पाठ करनेवालोंको दुक्क ट का दोप है। 143 २०-(१३) “यदि ० संकोचके साथ उपोसथ करें ० प्रातिमोक्षका पाठ हो चुकनेपर तथा सारी परिपके उठ जानेपर ० भिक्षु जो संख्यामें उनसे अधिक हों आ जायँ, तो उन भिक्षुओंको फिरसे प्रातिमोक्षका पाठ करना चाहिये। (और पहिले) पाठ करनेवालोंको दुक्क ट का दोप है। 144 (१४) “यदि ० नंकोचके साथ उपोसथ करें ० प्रातिमोक्षका पाठ हो चुकनेपर तथा सारी परिपके उट जानेपर ० भिक्षु जो संख्यामें उनके समान हों आ जायँ, तो जो पाठ हो चुका सो ठीक; उनके पान गुद्धि करनी चाहिये । पाठ करनेवालोंको दुवक ट का दोष है । 145 (१५) “यदि ० नंकोचके साथ उपोनथ करें ० प्रातिमोक्षका पाठ हो चुकनेपर तथा सारी -
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