पृष्ठ:विनय पिटक.djvu/२१५

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

१६४ ] ३-महावग्ग [ २०५।१ (e) परिषद्के उठ जानेपर ० भिक्षु जो संख्यामें उनसे कम हों आ जायँ, तो पाठ हो चुका सो ठीक; उनके पास शुद्धि करनी चाहिये । पाठ करनेवालोंको दुक्क ट का दोप है।" 146 पन्द्रह संकोच-सहित समाप्त (e) अन्य आश्रमवासियोंकी अनुपस्थितिमें कट्रक्ति-पूर्वक किया गया दोपयुक्त उपोसथ २१--(१) “यदि भिक्षुओ ! किसी आवासमें बहुतमे-चार या अधिक-आश्रमवासी भिक्षु उपोसथके दिन एकत्रित हों और वे जानें कि कुछ दूसरे आश्रमवासी भिक्षु नहीं आये; फिर- वह विनष्ट हो जाएँ, वह विनष्ट हो जायँ, उनसे क्या मतलब ! -से कविन पूर्वक उपोसथ करें, प्रातिमोक्षका पाठ करें और उनके प्रातिमोक्ष-पाठ करते समय दूसरे आश्रमवासी भिक्षु जो संख्या में उनसे अधिक हों आ जायँ तो भिक्षुओ! उन भिक्षुओंको फिरसे प्रातिमोक्ष पाठ करना चाहिये और (पहले) पाठ करनेवालोंको थु ल्ल च्च य (- स्थूल-अत्यय बळा अपराध) का दोष है । 147 (२) "यदि ० कटूक्ति-पूर्वक उपोसथ करें ० प्रातिमोक्ष पाठ करते समय ० भिक्षु जो मंग्यामें उनके समान हों आ जायँ तो भिक्षुओ! जो पाठ हो गया वह ठीक; बाकीको (वह भी) सुनें । पाठ करने- वालोंको थु ल्ल च्च य का दोष है। 148 (३) “यदि ० कटूक्ति-पूर्वक उपोसथ करें ० प्रातिमोक्ष पाठ करते समय ० भिक्षु जो संख्यामें उनसे कम हों आ जायँ तो भिक्षुओ ! जो पाठ हो गया वह ठीक; वाकीको (वह भी) सुनें । पाठ करनेवालों- को थु ल्ल च्च य का दोष है । 149 २२-(४) "यदि ० कटूक्ति-पूर्वक उपोसथ करें • प्रातिमोक्ष पाठ कर चुकनेपर ० भिक्षु जो संख्यामें उनसे अधिक हों, आ जायँ तो उन भिक्षुओंको फिरसे प्रातिमोक्ष पाठ करना चाहिये और पाठ करनेवालोंको थु ल्ल च्च य का दोष है। 150 (५) “यदि ० कटूक्ति-पूर्वक उपोसथ करें ० प्रातिमोक्षका पाठ कर चुकनेपर ० भिक्षु जो संख्यामें उनके समान हों, आ जायँ तो पाठ हो गया वह ठीक, उनके पास शुद्धि बतलानी चाहिये और पाठ करनेवालेको थु ल्ल च्च य का दोष है। ISI (६) "यदि ० कटूक्ति-पूर्वक उपोसथ करें ० प्रातिमोक्षका पाठ कर चुकनेपर ० भिक्षु जो संख्यामें उनसे कम हों, आ जायँ तो पाठ हो गया वह ठीक, उनके पास शुद्धि बतलानी चाहिये और पाठ करनेवालेको थु ल्ल च्च य का दोष है। 152 २३--(७) “यदि ० कटूक्ति-पूर्वक उपोसथ करें ० प्रातिमोक्षका पाठ कर चुकने किन्तु परिपद्के अभी न उठनेपर ० भिक्षु जो संख्यामें उनसे अधिक हों, आ जायँ तो उन भिक्षुओंको फिरसे प्रातिमोक्ष-पाठ करना चाहिये और पाठ करनेवालोंको थू ल्ल च्च य का ' दोप है। 153 (८) “यदि कटुक्ति-पूर्वक उपोसथ करें प्रातिमोक्षका पाठ कर चुकने किन्तु परिपद्के अभी न उठनेपर ० भिक्षु जो संख्यामें उनके समान हों, आ जाये तो पाट हो गया सो ठीक, उनके पास शुद्धि वतलानी चाहिये और पाठ करनेवालोंको थु ल्ल च्च य का दोप है । 154 (९) “यदि० कटूक्ति-पूर्वक उपोसथ करें० प्रातिमोक्षका पाठ कर चुकने किन्तु परिपके अभी न उटनेपर ० भिक्षु जो संख्यामें उनसे कम हों, आ जायँ तो पाठ हो गया सो ठीक, उनके पास शुद्धि वतलानी चाहिये और पाठ करनेवालोंको थु ल्ल च्च य का दोप है । I55 १ १ थुल्लच्चय (स्थूल-अत्यय) एकके भूलोंकी देशना करता है और जो उसे नहीं ग्रहण करता उसके समान दोष (अत्यय) नहीं इसलिये यह वैसा कहा जाता है। (--अट्ठ कथा) ।