पृष्ठ:विनय पिटक.djvu/२२१

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" ५. O १७० ] ३-महावग्ग [ २६५ २२-" ० भिक्षुवाले अन्-आश्रम भिक्षुवाले ऐसे आश्रमसे या अन्-आश्रममें जाना चाहिये ० । 870 २३-"० भिक्षुवाले आश्रम या अन्-आश्रमसे भिक्षुवाले ऐसे आश्रममें जाना चाहिये।। 871 २४-० भिक्षुवाले आश्रमसे ऐसे भिक्षुवाले अन्-आश्रममें जाना चाहिये ० 1872 २५-"० भिक्षुओ ! उपोसथके दिन भिक्षुवाले आश्रम या अनाश्रमसे भिक्षुवाले ऐसे आश्रम या अनाश्रममें जाना चाहिये जहाँपर एक जैसे सहनिवासवाले भिक्षु हों, और जहाँपरके लिये वह जानता हो कि उसी दिन पहुँच सकेगा।" 873 (४) प्रातिमोक्ष-यावृत्ति के लिये अयोग्य सभा १-" भिक्षुओ ! जिस परिपद्में भिक्षुणी बैठी हो उसमें प्रातिमोक्ष पाठ नहीं करना चाहिये । जो पाठ करे उसे दुक्कटका दोष हो । 874 २-"० शिक्षमाणा बैठी हो ० 1875 ० श्रामणेर बैठा हो ० । 876 ४-" ० श्रामणेरी बेटी हो ० । 877 (भिक्षु) नियमोंका प्रत्याख्यान करनेवाला बैठा हो ० 1 878 ० अन्तिम दोष ( = पाराजिक ) का दोपी वैठा हो ० । 879 -" • दोषके न देखनेसे उत्क्षिप्त हुआ ( पुरुष ) बैठा हो उसमें प्रातिमोक्ष पाठ नहीं करना चाहिये । जो पाठ करे उसे धर्मानुसार ( दंड ) करवाना चाहिये । 880 ८-० दोषके प्रतिकार न करनेसे उत्क्षिप्त हुआ पुरुप बैठा हो 01 881 ९-" ० बुरी धारणाके न त्यागनेसे उत्क्षि प्त हुआ पुरुष बैठा हो ० । 882 १०-" • पंडक वैठा हो उसमें प्रातिमोक्ष पाठ नहीं करना चाहिये । जो पाट करे उसे दुक्क ट का दोष हो । 883 ११-" ० चोरीसे .( = अपने आप ) चीवर पहन लेनेवाला ( पुरुप ) बैठा हो ० । 884 १२-- ० तीथिकोंके पास चला गया बैठा हो ० । 885 १३-" ० तिर्यग् योनिवाला ( = नाग आदि ) वैठा हो ० । 886 १४-" ० मातृ-घातक बैठा हो o 1887 १५-" ० पितृ-घातक वैठा हो ० । 888 १६--' ० अर्हद्-घातक बैठा हो ० । 889 १७-" ० भिक्षुणी-दूषक बैठा हो ० । 890 १८-" ० संघमें फूट डालनेवाला बैठा हो ० । 891 १९-"0 (बुद्धके शरीरसे) लोहू निकालनेवाला बैठा हो ० ।892 २०-"० (स्त्री-पुरुष) दोनों लिंगोंवाला बैठा हो ० । 893 २१-" • भिक्षुओ! परिपके न उठी होनेके सिवाय परिवास संबंधी शुद्धि देकर उपोसथ नहीं करना चाहिये ।" 894 (५) उपोसथके दिन ही उपोसथ "भिक्षुओ ! संघकी समग्रताके अतिरिक्त उपोसथसे भिन्न दिनको उपोसथ नहीं करना चाहिये ।" 895 तृतीय भाणवार समाप्त ॥३॥ उपोसथ-क्खन्धक समाप्त ॥२॥