३-वर्षोपनायिका-स्कंधक १--वर्षावासका विधान और उसका काल । २--बीचमें सप्ताह भरके लिये वर्षावासका तोळना ३--वर्षावास करनेके स्थान । ४--स्थान-परिवर्तनमें सदोषता और निर्दोषता । ७१-वर्षावासका विधान और काल ?-राजगृह ( १ ) वर्षावासका विधान १–उस समय बुद्ध भगवान् रा ज गृह के वेणु व न क लं द क नि वा प में विहार करते थे उस समय तक भगवान्ने वर्षावास करने का विधान नहीं किया था और भिक्षु हेमन्तमें, भी ग्रीष्ममें भी, वर्षा में भी विचरण करते थे। लोग हैरान होते थे—'कैसे शाक्य-पुत्रीय श्रमण हरे तृणोंको मर्दन करते एक इन्द्रियवाले जीव (=वृक्ष-वनस्पति)को पीळा देते बहुतसे छोटे छोटे प्राणि समुदायोंको मारते हेमन्तमें भी, ग्रीष्ममें भी, वर्षा में भी विचरण करते हैं ! यह दूसरे तीर्थ (=मत) वाले जिनका धर्म अच्छी तरह व्याख्यान नहीं किया गया है वह भी वर्षावासमें लीन होते हैं, एक जगह रहते हैं यह चिळियाँ वृक्षोंके ऊपर घोंसले वनाकर वर्षावासमें लीन होती हैं, एक जगह रहती हैं किन्तु ये शाक्य-पुत्रीय श्रमण हरे तृणोंको मर्दन करते० विचरण करते हैं।' भिक्षुओंने उन मनुष्योंके हैरान होनेको सुना । तब उन भिक्षुओंने भगवान्से यह वात कही । भगवान्ने इसी संबंधमें इसी प्रकरणमें धार्मिक कथा कह भिक्षओंको संबोधित किया- "भिक्षुओ ! अनुमति देता हूँ वर्षावास करनेकी ।" I (२) वर्षावासका प्रारम्भ १-तव भिक्षुओंको यह हुआ—'कवसे वर्षावास करना चाहिये ?' भगवान्से यह वात कही।- "भिक्षुओ ! अनुमति देता हूँ वर्पा (ऋतु) में वर्षावास करनेकी ।" 2 २–तव भिक्षओंको यह हुआ—'क्या है व स्सू प ना यि का (=वर्पोपनायिका जो तिथि वर्षा को ले आती है) ?' भगवान्ते यह वात कही।- "भिक्षुओ ! पहिली और पिछली यह दो वर्षोपनायिका हैं । आपाढ़ पूर्णिमाके दूसरे दिनसे पहला (वर्पावास) आरम्भ करना चाहिये, या आपाढ़ पूर्णिमाके मास भर बाद पिछला (वर्पावास) आरम्भ करना चाहिये । भिक्षुओ ! यह दो (श्रावण कृष्ण-प्रतिपद् और भाद्र कृष्ण-प्रतिपद्) वर्पो- पना चि का है।" ६.६] [ १७१
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