पृष्ठ:विनय पिटक.djvu/२२८

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! ३७२।३ ] संदेश मिलनेपर सात दिनके लिये बाहर जाना [ १७७ हूँ, मेरा पुत्र आये, मैं पुत्रका आगमन चाहती हूँ। तब उस भिक्षुको हुआ—'भगवान्ने विधान किया है संदेश भेजनेपर सात जनोंके सप्ताह भरके कामके लिये जानेको। संदेश न भेजनेपर नहीं; और सन्देश भेजे विना भी पाँच जनोंके सप्ताह भरके कामके लिये जानेको; संदेश भेजनेपर तो बात ही क्या । और यह मेरी माता रोगिणी है, किन्तु वह उपासिका (=बौद्ध स्त्री) नहीं है। मुझे कैसे करना चाहिये ?' भगवान्से यह बात कही "भिक्षुओ ! अनुमति देता हूँ सात जनोंके सप्ताह भरके कामके लिये, विना संदेश भेजे भी जानेकी । संदेश भेजनेपर तो बात ही क्या -'भिक्षु, भिक्षुणी, शिक्षमाणा, श्रामणेर, श्रामणेरी, माता और पिता (के कामके लिये) । भिक्षुओ ! अनुमति देता हूँ इन सातोंके सप्ताह भरके कामके लिये विना संदेश भेजे भी जानेकी; संदेश भेजनेपर तो बात ही क्या । सप्ताह में लौट आना चाहिये । 139 ९–“यदि भिक्षुओ ! (किसी) भिक्षुकी माता रोगिणी हो, और वह पुत्रके पास संदेश भेजे-'मैं रोगिणी हूँ, मेरा पुत्र आवे, मैं पुत्रका आगमन चाहती हूँ;' तो भिक्षुओ ! सप्ताह भरके कामके लिये विना संदेश पाये भी जाना चाहिये; संदेश पानेकी तो बात ही क्या । ( इस विचारसे कि ) पथ्यका प्रबंध करूँगा, रोगिणीकी सुश्रूपाका प्रवन्ध करूँगा, ओषधिका प्रबंध करूँगा, देखभाल करूँगा या सेवा करूँगा । सप्ताहमें लौट आना चाहिये । 140 १०-"यदि भिक्षुओ ! (किसी) भिक्षुका पिता रोगी हो ० (३) संदेश मिलनेपर सात दिनके लिये बाहर जाना १- "यदि भिक्षुओ ! भिक्षुका भाई बीमार हो और वह भाईके पास संदेश भेजे–'मैं रोगी हूँ, मेरा भाई आये, मैं भाईका आगमन चाहता हूँ, तो भिक्षुओ ! सप्ताह भरके, कामके लिये संदेश भेजनेपर जाना चाहिये, विना संदेशके नहीं; और सप्ताह भरमें लौट आना चाहिये । 142 २-" यदि भिक्षुओ ! (किसी) भिक्षुका जाति-भाई वीमार हो और वह भिक्षुके पास संदेश भेजे-'मैं बीमार हूँ, भदन्त आयें, मैं भदंतका आगमन चाहता हूँ' तो भिक्षुओ ! सप्ताह भरके कामके लिये संदेश भेजनेपर जाना चाहिये संदेश न भेजनेपर नहीं । और सप्ताहमें लौट आना चाहिये । 143 ३-" यदि भिक्षुओ ! भिक्षुका भृतिक (=विहारका नौकर) वीमार हो और वह भिक्षुओंके पास संदेश भेजे-'मैं बीमार हूँ, भदन्त लोग आयें, मैं भदन्तोंका आगमन चहता हूँ;' तो भिक्षुओ ! संदेश भेजनेपर सप्ताह भरके कामके लिये जाना चाहिये । संदेश न भेजनेपर नहीं । सप्ताहमें लौट आना चाहिये ।" 144 ४-उस समय संघका (वळा) विहार टूट रहा था । एक उपासकने जंगलमें (लकळी) सामान कटवाया था । उसने भिक्षुओंके पास सन्देश भेजा—'यदि भदन्त लोग इस सामानको ले जा सकें तो मै इने उन्हें देता हूँ;' भगवान्से यह बात कही।- “भिक्षुओ ! अनुमति देता हूँ, संघके कामसे जानेको ( किन्तु ) सप्ताहमें लौट आना 1" 141 चाहिये ।" 145 वर्षावास भाणवार समाप्त 'माताकी तरह यहाँ भी दुहराना चाहिये ।