पृष्ठ:विनय पिटक.djvu/२३३

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१८२ ] ३-महावग्ग [ ३६४१२ कहा—'भन्ते ! यदि मैं पहले प्रबजित हुआ होता तो (भिक्षु जीवनमें) रमण करता; किन्तु अब में नहीं प्रव्रजित होऊँगा।' विशाखा मृगारमाता हैरान . . होती थी-कैसे आर्य लोग ऐसी प्रतिज्ञा करते हैं कि वर्षाके भीतर प्रव्रज्या नहीं देंगे ! कौन काल ऐसा है कि जिसमें धर्माचरण नहीं किया जाय?' भिक्षुओंने विशाखा मृगारमाताके हैरान होनेको मुना। तब उन्होंने यह बात भगवानसे कही।- "भिक्षुओ ! ऐसी प्रतिज्ञा नहीं करनी चाहिये कि वकि भीतर हम प्रव्रज्या नहीं देंगे। जो करे उसे दुक्कटका दोष हो।" 191 ६४-स्थान-परिवर्तनमें सदोपता और निर्दोपता (१) पहिलो वर्पोपनायिकामे वचन दे वर्षावासमें व्यतिक्रम निपिट्ट १-उस समय आयुष्मान उपनंद शाक्यपुत्रने राजा प्रसेनजित् कोसलमे पहिली वर्षोपनायिका से वर्षावास करनेका वचन दिया था। और उन्होंने उस आवास (भिक्षु-आश्रम) में जाते वक्त रास्तेमें बहुत चीवरोंवाला एक आवास देखा । तब उनको हुआ--क्यों न मैं दोनों आवायोंमें वर्षावास करूँ? इस प्रकार मुझे बहुत चीवर मिलेगा। तब वह दोनों आवासोंमें वर्षावास करने लगे । राजा प्र से न जि त् को स ल हैरान ... होता था--' -'कैसे आर्य उ प नं द शाक्यपुत्र हमें वर्पावासका वचन देकर झूठ करते हैं। भगवान्ने अनेक प्रकारसे झूठ बोलनेकी निंदा की है, और झूठ बोलनेके त्यागको प्रशंसा है।' भिक्षुओंने राजा प्रसेनजित् कोसलके हैरान होनेको सुना। तब जो अल्पेच्छ भिक्षु थे वह हैरान होते थे--'कैसे आयुष्मान् उ प नं द शाक्यपुत्र राजा प्रसेनजित् कोसलको वर्षावासका वचन दे झूठ करते हैं ! भगवान्ने तो अनेक प्रकारसे झूठ बोलनेकी निंदा की है और झूठ बोलनेके त्यागको प्रशंसा है।' तब उन भिक्षुओंने यह बात भगवान्से कही। भगवान्ने इसी संबंधमें इसी प्रकरणमें भिक्षु-संघको एकत्रित कर आयुष्मान् उ पनं द शाक्यपुत्रसे पूछा- "सचमुच उपनं द ! तूने राजा प्रसे न जि त् कोसलको वर्षावासका वचन दे झूठ किया ?" "हाँ सच भगवान् !" वुद्ध भगवान्ने फटकारा--'कैसे तू निकम्मा आदमी राजा प्रसेनजित् कोसलको वर्षावासका वचन दे झूठा करेगा? मोघ-पुरुष ! मैंने तो अनेक प्रकारसे झूठ बोलनेकी निंदा की है और झूठ बोलनेके त्यागको प्रशंसा है । मोघ-पुरुप ! यह न अप्रसन्नोंको प्रसन्न करनेके लिये है ० ।' फटकार कर धार्मिक कथा कह भगवान्ने ( भिक्षुओंको ) संबोधित किया-- "यदि भिक्षुओ ! कोई भिक्षु ( किसीको ) पहिली व पोप ना यि का से वर्षावास करनेका वचन दे और उस आवासमें जाते वक्त रास्ते में एक बहुत चीवरोंवाला आवास देखे । तब उसको हो--क्यों न मैं दोनों आवासोंमें वर्षावास करूँ ? इस प्रकार मुझे बहुत चीवर मिलेगा' । तब वह दोनों आवासोंमें वर्षावास करने लगे। भिक्षुओ ! उस भिक्षुको पहिली ( वर्पोपनायिका ) न मालूम हो, तोभी तुरंत उसको दुक्कटका दोप हो ।” 192 (२) पहिली वोपनायिकासे वचन दे आवाससे जाने-लौटने के नियम १-(दोप) )-क. "यदि भिक्षुओ ! किसी भिक्षुने पहिली व पोप ना यि का से वर्षावास करनेका वचन दिया हो और उस आवासमें जाते वक्त वह वाहर उपोसथ करे पीछे विहार में जाये, आसन-वासन बिछाये, धोने-पीनेका पानी रखे, आँगनमें झाळू दे, और करने लायक कामके न रहने !